भौतिक जगत में जैसे विकास होता है, आध्यात्मिक जगत में सब कुछ बिल्कुल भिन्न है | क्यों ? इसकी मूल वजह है कि यह शरीर आत्मा ने धारण किया है तो जो आध्यात्मिक क्षेत्र में होगा वहीं permanent होगा अन्यथा नहीं | सोच कर देखें ?
मनुष्य रूप में 11 लाख विभिन्न योनियां हैं, फिर भी हर बार हमें वहीं शिशु की तरह धरती पर प्रवेश मिलता है और हर बार वहीं nursery class से शुरुआत | अगर हम पिछले जन्म में डॉक्टर थे तो भी अगले जन्म में nursery class से शुरुआत | कुछ भी अगले जन्म में आगे नहीं जाता |
इसके विपरीत आध्यात्मिक जगत में जो भी progress/ बढ़त है वह अगले जन्म में भी बरकरार रहती है | कैसे ?
Example के तौर पर स्वामी विवेकानंद की जिंदगी को ले लीजिए | वे 39 साल की आयु में शरीर छोड़ गए | जब रामकृष्ण परमहंस से मिले तो उन्होंने कहा, तुम चाहो तो इस जन्म में तत्वज्ञान प्राप्त कर जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त हो सकते हो | स्वामी विवेकानंद ने उत्तर दिया, अगले जन्म में, इस जन्म में कुछ जिम्मेदारियां हैं जो पूरी करनी हैं |
अगले जन्म में जब swami vivekanand की आत्मा शरीर धारण करेगी तो जिस ज्ञान का स्वामी, स्वामी विवेकानन्द मृत्यु के समय था, अगले जन्म में वह ज्ञान उसके पास जन्म से होगा | भले ही दुनिया उस बालक को पहचान न पाए जो पिछले जन्म में स्वामी विवेकानन्द था लेकिन सही समय आने पर सब उसे पहचान लेंगे | शायद PLR (past life regression) से भी यह साबित हो सके |
आध्यात्मिक सफर में जो भी achievements हैं, विकास है, वह बरकरार रहता है | जिस level पर हमने पिछले जन्म में छोड़ा था, अगले जन्म में उसी level से शुरू करेंगे | है न गजब की बात |
How spiritual values can be taught in school? आध्यात्मिक ज्ञान क्या स्कूलों में पढ़ाया जा सकता है