ब्रह्म की तरह हर आत्मा भी दृष्टा की भांति काम करती है | कर्म हमेशा शरीर करता है, जो चेतना (आत्मा) ने धारण किया है | जब मनुष्य अध्यात्म में उतर ध्यान इत्यादि करता है तो आध्यात्मिक उन्नति होती है | अगर आत्मा स्वयं ही आध्यात्मिक प्रगति कर सकती तो उसे मनुष्य शरीर धारण करने की आवश्यकता ही क्या थी ?
जब मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होता है तो मृत्यु के समय जो भी आध्यात्मिक प्रगति हो चुकी है – अगले जन्म में आत्मा जो भी शरीर लेगी अध्यात्म उसी level से शुरू कर सकेंगे | अध्यात्म में कोई भी उन्नति waste नहीं जाती | हर जन्म में हम आगे बढ़ते ही जाते हैं |
Dhyan kaise karein | ध्यान करने की सही विधि | Vijay Kumar Atma Jnani