मैं मरने के बाद भी जीना चाहता हूँ क्या सम्भव है ?


महावीर चले गए लेकिन हकीकत में वह ज्यादातर जैनियों के दिलों में आज भी जिंदा है | तत्वज्ञानी कभी नहीं मरता | वह समाज को दिए ज्ञान के सहारे हमेशा जिंदा रहते हैं | जब छोटा था खेतों में कृष्ण को ढूंढने निकला, कैसे मिलते – वह तो हजारों साल पहले जा चुके थे | फिर मालूम पड़ा महावीर, बुद्ध भी नहीं है | आखिरी तत्वज्ञानी महर्षि रमण 1950 में जा चुके थे |

 

बहुत सोचने के बात एक बात समझ में आई | अगर महर्षि रमण जिंदा होते तो लाखों अनुयायिओं के बीच जरूरी तो नहीं मिलने का समय दे पाते | मिल भी लेता तो कितनी देर के लिए ? बहुत सोचा तो तत्व की बात समझ आई | जो कुछ महर्षि रमण दुनियां को देना चाहते थे वह तो उनकी/ उनके ऊपर लिखी गई पुस्तकों में उपलब्ध है |

 

बस फिर क्या था | महर्षि के ऊपर काफी पुस्तकें इकट्ठा की | हंस की भांति सत्य को चुग लिया बाकी छोड़ दिया | और मुझे सही में महर्षि रमण की self enquiry की technique समझ आ गई | बस फिर मुड़ के नहीं देखा | यह सच है कोई अमर होना चाहता है तो अध्यात्म का रास्ता पकड़ तत्वज्ञानी हो जाना चाहिए |

 

What was the role of Arjuna in Mahabharata? आज का अर्जुन कौन आध्यात्मिक परिवेश में | Vijay Kumar

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