कर्म कितने प्रकार के होते हैं उनमें श्रेष्ठ कर्म कौन सा है ?


हमे शाब्दिक अर्थों या प्रकार पर कभी नहीं जाना चाहिए ? जो कर्म आध्यात्मिक journey में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है वह है निष्काम कर्मयोग | अपनी मैं (अहंकार) को नस्ट करने के लिए, अपने मोह को खत्म करने के लिए हमें कर्म निष्काम भाव से करने होंगे | फल क्योंकि हमेशा आत्मा का होता है न कि शरीर (मनुष्य) का, निष्काम भाव से कर्म करने पर कर्मबंध नहीं होता और कर्मों की निर्जरा होनी शुरू हो जाती है |

 

एक कर्म होता है भावकर्म | जैन धर्म भावकर्म को बड़ी मान्यता देता है | हमने फिजिकल मर्डर नहीं किया लेकिन विचारों में खूब होते रहते हैं | तो जैन धर्म कहता है दंड तो अवश्य मिलेगा लेकिन बहुत कम |अगर फिजिकल मर्डर के -10000 karmic marking मिली तो वैचारिक मर्डर का -1 तो मिलेगा ही | इसीलिए भगवद गीता में कृष्ण हमेशा पुण्यकर्म करने की हिदायत देते हैं |

 

तीसरा पहलू है हर समय पुण्यकर्म में लीन रहना न कि पापकर्म मैं | आजकल कलियुग में हम अक्सर देखते हैं लोग दूसरों को पुण्यकर्म करने की advice देंगे लेकिन खुद पापकर्म में लगे रहेंगे | अध्यात्म की राह पर हमें हमेशा निष्काम कर्मयोग में लगे रहना चाहिए | भावो में भी किसी का अहित नहीं सोचे और पुण्यकर्म करते चले जाएं | कोई वजह नहीं कि आध्यात्मिक उन्नति न हो |

 

Nishkama Karma Yoga | निष्काम कर्म योग का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani

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