मैं क्या करूँ जिससे भगवान कृष्ण की कृपा मुझ पर हो ?


जब मैं लगभग 6 1/2 वर्ष का था और पूछने के बावजूद कोई उत्तर नहीं मिल रहा था न घर से न बाहर से – तो एक दिन इतवार की सुबह अपने प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए गांव के पास बसे खेतों की ओर निकल गया | यह सोचकर कि मुरली बजाता कृष्ण घास चरती गायों के बीच मिल जाएगा | घर में जब कृष्ण पर चर्चा हुई किसी ने नहीं बताया – कहां मिलेगा |

 

बालक बुद्धि – सोचा खुद चलकर देख लेते हैं | कृष्ण मिल गया तो कोशिश करेंगे कि सुदामा की तरह दोस्त बन जाए जिससे समय समय पर प्रश्नों के उत्तर दे दिया करे | गाएं तो मिली लेकिन कृष्ण का कोई अता पता नहीं | काफी देर ढूंढने के बाद बुड्ढा चरवाह जो दूर से देख रहा था बोला – किसे ढूंढ़ रहे हो भाई ? मैंने कहा कृष्ण को – घर में सब कह रहे थे कि मुरली बजाता गाएं चराता रहता है |

 

वह हंसने लगा और बोला, जैन साहब के परिवार से हो ना – कृष्ण को मरे तो हजारों साल बीत गए | बात पूरी होने से पहले घर की ओर भागा और घर आकर दादी समेत सब को डांटा | आसूं बह रहे थे – क्या पहले नहीं बता सकते थे कृष्ण नहीं हैं ! पूरा 2 1/2 घंटा खराब कर दिया |

 

सत्य पर पूर्णतया स्थापित होने के कारण मुझे 5 वर्ष की आयु से हृदय से आवाज़ आती थी | काफी समय तक घबराता रहा और आवाज़ को अनसुना कर देता | लेकिन एक बार मैंने आवाज़ सुनने की कोशिश की तो पाया की यह आवाज़ बिल्कुल सच बोल रही है और हमेशा कुछ guide करने की कोशिश करती है |

 

अब मैं समय समय पर इस आवाज़ को सुनता तो पाता मेरे काफी सारे प्रश्नों के उत्तर तो इसी आवाज़ ने दे दिए | लगभग 8 1/2 वर्ष की आयु में ऋषिकेश में गीताप्रेस के बुक स्टॉल पर जब गीता पर टीका को पलट कर देखा तो कुछ चलचित्र देखे | उसमे जो भी चित्रित था – मनुष्य, गाय, शेर, हंस और अन्य पशु पक्षी – सभी के हृदय स्थल पर कृष्ण का चेहरा अंकित था | आज भी भगवद गीता की टीका में ये चलचित्र दिख जाएंगे |

 

उस समय बात समझ नहीं आई – घर पहुंचकर बहुत विचारने के बाद खयाल आया – कहीं मेरे हृदय से आती आवाज़ कृष्ण की तो नहीं ? मैंने अपने पूरे जीवन में भगवद गीता के श्लोक एक बार भी खोलकर नहीं देखे – लेकिन उनका मर्म मुझे साफ़ समझ आने लगा था | धीरे धीरे मेरा यह दृढ़ विश्वास हो गया कि हो न हो कृष्ण ही मुझे सब बता रहे हैं |

 

37 वर्ष की आयु में जैसे ही ब्रह्म से 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार हुआ – सब समझ आ गया – वह सारथी रूप में कृष्ण ही थे जो हर इंसान के हृदय स्थल पर हर समय विराजमान रहते हैं | कबीर ने कहा भी है – कस्तूरी कुंडली बसे यानि कस्तूरी तो अपने अंदर ही है हमेशा से (सारथी रूप में कृष्ण) और दुनिया बाहरी क्रियाकलापों, कर्मकांडो में ढूंढ़ती रहती है |

 

बस मुझे इतना ही कहना है – सत्य का दामन हमेशा के लिए थाम लो – फिर सारथी कृष्ण हर समय तुम्हारे साथ हैं |

 

Listen to Inner Voice coming from within our Heart | हृदय से आती आवाज को सुनना सीखें | Vijay Kumar

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