संस्कार शब्द समाज की देन नहीं है – यह प्रथा गुरुकुल की देन है | जब बालक गुरुकुल में भर्ती हो गया तो वह गुरुकुल के संरक्षण में बड़ा होता है | वह 10~12 वर्षों के लिए गुरुकुल से बंध जाता है | अब बाहर उचित प्रशिक्षण के बाद ही निकलेगा – विभिन्न कलाओं में पारंगत | गुरुकुल में रहकर वह सीखता है परिवार किसे कहते हैं, मां बाप कौन होते हैं, दादा दादी से क्या रिश्ता है |
उसके अंदर संस्कार कूट कूट कर भर दिए जाते हैं | बड़ों का सम्मान, अतिथि का सम्मान, घर आए को पानी पिलाना, भूखे न जाने देना – यह सब संस्कार वह धीरे धीरे अपने अंदर बिठाता जाता है | जब गुरुकुल से पहली बार घर जाता है तो माता पिता का चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लेना, दादा दादी से आशीर्वाद लेना और फिर उन्हें बताना वह क्या सीख कर आया है |
यह संस्कार ही तो थे कि एकलव्य ने गुरुदक्षिणा में द्रोणाचार्य को अपना अंगूठा पेश किया – वह तब जब गुरु द्रोणाचार्य उसके गुरु भी नहीं थे |
आने वाले समय में जब गुरुकुल परंपरा पूरे भारत में 2032 से दोबारा चालू हो जाएगी तो संस्कार प्रथा स्वयं लौट आएगी | आज का educational system नौकर पैदा करता है और गुरुकुल में तैयार होते हैं परिपक्व शिष्य – अपनी अपनी कलाओं में पारंगत |
2024 से 2032 तक का समय आध्यात्मिक दृष्टिकोण से | Vijay Kumar Atma Jnani