अध्यात्म यानि अंतर्मुखी हो आंतरिक यात्रा में खो जाना – जो करना है साधक ने करना है | हमारे क्लेश कोई गुरु नहीं मिटा सकता – कर्मों की निर्जरा हमें खुद ही करनी होगी | अध्यात्म के रास्ते पर गुरु की आवश्यकता महसूस होती है जब हमें अपने प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल पा रहे | लेकिन फिर गुरु तत्वज्ञानी होना चाहिए |
महर्षि रमण धरती पर आखिरी तत्वज्ञानी थे जो 1950 में चले गए | उनके जाने के बाद लोग इंतज़ार कर रहे हैं 64 कलाओं से युक्त निष्कलंक कल्कि अवतार का | 800 करोड़ लोगों में यह संभव नहीं लगता कि कल्कि अवतार किसी भी साधक को विचार विमर्श के लिए उचित समय दे पाएंगे – इतना कि हमारे अंदर उमड़ते प्रश्न जड़ से खत्म हो जाएं |
तो इसका समाधान क्या है ? रास्ता एक ही है – सत्य की राह पकड़ हम हृदय से आती भगवान कृष्ण (सारथी) की वाणी सुन सकें | आज तक मैंने जितने भी साधकों से बात की है – सभी यही कहते नजर आए – हमें तो कोई आवाज़ सुनाई नहीं देती |
भारत की एक विशेषता है – झूठ हम बेहद आसानी से बोल लेते हैं | झूठ के मुलम्मे के नीचे सत्य की आवाज़ हमेशा के लिए दब गई तो सुनाई कैसे देगी ? अगर हमें हृदय से आती कृष्ण की वाणी सुननी है तो झूठ को हमेशा के लिए त्याग सत्य की राह पर चलना होगा – एक भी झूठ नहीं चलेगा | मुश्किल है बेहद मुश्किल – असंभव नहीं |
मैंने अपने सम्पूर्ण आध्यात्मिक सफर में भगवद गीता एक बार भी खोल कर नहीं देखी – क्यों ? क्योंकि 5 वर्ष की आयु से सत्य की राह पर चलते हुए मुझे भगवान कृष्ण की वाणी साफ सुनाई देती थी | घर में गीताप्रेस की टीकाएं रखी हुई थी लेकिन जरूरत नहीं पड़ी | बिना पढ़े – गीतासार समझ आ गया | जब सिर पर भगवान कृष्ण का हाथ हो तो कमी किस बात की |
मैं दृढ़ता के साथ कह सकता हूं कि मैंने अपने आध्यात्मिक जीवन में गुरु की खोज तो की – क्योंकि मुझे मेरे प्रश्नों के उत्तर कोशिशों के बाद भी नहीं मिल रहे थे | लेकिन जब से हृदय से आती आवाज़ को सुनना शुरू किया – तो आध्यात्मिक रुख ही बदल गया | शुरू में हृदय से आती आवाज़ से बहुत डरा लेकिन धीरे धीरे सारा डर हमेशा के लिए लुप्त हो गया |
Listen to Inner Voice coming from within our Heart | हृदय से आती आवाज को सुनना सीखें | Vijay Kumar