ध्यान की परम सीमा तक जाने के लिए गुरु कितने जरूरी हैं – अगर गुरू नहीं मिल पा रहे तो क्या करे ?


अध्यात्म के क्षेत्र में गुरु की कोई आवश्यकता नहीं | भगवद गीता में कृष्ण कितना स्पष्ट बताते हैं कि गुरु किया तो आध्यात्मिक उन्नति वहीं रुक जाएगी | क्यों ? गुरु बनाने के बाद हमारा ध्यान गुरु की बातों पर होगा न कि खुद के आध्यात्मिक सफर पर | आखिरकार गुरु तत्वदर्शी होना चाहिए अन्यथा क्या पढ़ाएगा ?

 

किस तत्वदर्शी गुरु की हम बात कर रहे हैं ? आखिरी तो महर्षि रमण थे जो १९५० में शरीर छोड़ गए | भगवद गीता में कृष्ण कहते हैं आध्यात्मिक मार्ग एक अंदरूनी सफर है जिसपर अकेले ही चलना पड़ता है | ब्रह्म की खोज ध्यान में चिंतन में उतरकर की जाती है | चिंतन में गुरु का क्या काम ?

 

फिर भी अगर कोई अच्छा senior साधक day-to-day सलाह मशविरा के लिए available है तो बहुत अच्छा | सत्संग तो हो ही जायेगा |

 

मान लीजिए अगर आज महर्षि रमण आ जाएं, तो क्या ८०० करोड़ लोगों में वह आपको समय दे पाएंगे ? अगर हां तो ठीक, अगर न तो क्या करेंगे ? मुझे अपने आध्यात्मिक सफर में जब कोई गुरु नहीं मिला, तो हताशा मुंह से निकल गया, हे प्रभु, क्या तुम मेरे गुरु बनोगे | मेरा यह कहना था, आवाज़ आई – हां और फिर मैंने आध्यामिक जीवन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा |

 

Dhyan kaise karein | ध्यान करने की सही विधि | Vijay Kumar Atma Jnani

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