गृहस्थ जीवन में हम अध्यात्म में उतर तो सकते हैं बशर्ते वह गलती न दोहराएं जो सिध्दार्थ गौतम ने की थी | सिद्धार्थ गौतम लगभग 29 वर्ष की आयु में अपनी पत्नी और बच्चे के पैर छू रात के समय घर से हमेशा के लिए निकल गए – उन प्रश्नों के उत्तर की खोज में जिनका उत्तर उन्हें राजमहल में रहते हुए नहीं मिला |
पत्नी और बच्चे के पैर छू लेने मात्र से कर्मों की निर्जरा नहीं होती | जब शादी हुई है और बच्चा भी है तो जिम्मेदारी तो निभानी ही पड़ेगी | इसका नतीजा यह हुआ – ब्रह्म ने सिद्धार्थ गौतम को जो दंड दिया – उसके कारण सिद्धार्थ ने जंगलों में विचरण किया लेकिन सही उत्तर नहीं मिले, फिर समाज की ओर मुड़े और राजमहल वापस न आकर बाहर गांव में ही आसन जमा लिया | यह सोचकर शायद यहां उत्तर मिल जाए |
न जंगलों में और न ही community में वापस आकर उन्हें कोई उत्तर मिले तो सिद्धार्थ ने middle path (बीच का रास्ता) अपनाने को कहा | सत्य की खोज करते करते उम्र बीती जा रही थी – सिध्दार्थ परेशान हो चुके थे | तो एक दिन वो समाधि में बोधि वृक्ष के नीचे बैठ गए | और बैठे तो 12 साल की तपस्या पूर्ण की | अंततः 80 वर्ष की अवस्था में ब्रह्म ने उन्हें तत्व से अवगत कराया |
सिद्धार्थ का शरीर जर्जर हो चुका था – वह बेहद थक चुके थे और शारीरिक रूप से कमजोर हो गए थे | 81 वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ ने शरीर त्यागा और निर्वाण प्राप्त किया |
अगर घर में रहकर अध्यात्म के रास्ते पर जाना है तो घर के हर सदस्य से individually इजाजत लेनी होगी और वह भी बिना जबरदस्ती किए | अगर इजाजत मिल जाती है तो ठीक अन्यथा आपकी किस्मत – अगले जन्म का इंतजार करें |
How to indulge in Spirituality when married | गृहस्थ जीवन में अध्यात्म का रास्ता कैसे पकड़ें