मनुष्य जीवन का उद्देश्य परमपिता परमात्मा को पाना है तो बहुत इंसानों को इसका बोध क्यों नहीं होता ?


अगर मनुष्य भगवान के साकार रूप को ही देखना चाहता है तो उसे लगता है परम पिता परमेश्वर को पाना ही मानव जीवन का अंतिम ध्येय है | यह अनुभूति भी उन्हीं मनुष्यों को होती है जो धार्मिक प्रवत्ति के हैं | मनुष्यों के लिए ब्रह्म ने 11 लाख योनियों का सफर सुनिश्चित किया है – फिर सभी को परम पिता को पाने की जल्दी क्यों होगी ?

 

आज के materialistic जीवन में कितने मनुष्य सच में धर्म को निभाते हुए भगवान को जानने की कोशिश करते हैं – मेरे दृष्यानुसार लोग प्राय भगवान में रुचि रखने का दिखावा करते हैं | जिनको इस बात का आभास है की अंततः भगवान को पाने की कोशिश एक दिन शुरू करनी ही है – वे भी public में कुछ भी बताने से सकुचाते हैं !

 

सच तो यह है – अपनी ego से बंधे ज्यादातर मनुष्य – सत्य से दूर भागते हैं | अगर कोई कुछ पूछ भी ले तो गोलमोल जवाब देंगे | सब अपनी मैं के गुलाम हो चुके हैं | उनको भगवान की ओर मोड़ने की कोशिश बेकार है | ज्यादातर मनुष्य सनातन सच को जानते हुए भी स्वीकारेंगे नहीं | सत्यमार्ग पर न चलने के कारण ही भारतवासी पहले मुगलों और फिर फिरंगियों के गुलाम रहे |

 

इन सब के विपरीत अध्यात्म के रास्ते पर चलने वाला सत्य का पुजारी हमेशा सत्य का सामना करता है | वह सत्य पर आधारित भगवान के निराकार रूप को स्वीकार करते हुए जीवन में आगे बढ़ता है | वह परमात्मा को पाना नहीं चाहता – वह ब्रह्म से मिलना चाहता है – उसका साक्षात्कार करना चाहता है | ब्रह्म पाने की नहीं – अनुभव की चीज है |

 

ब्रह्म नदियों, पहाड़ों की कंदराओं में नहीं बल्कि अपने हृदय में मिलेंगे | अगर आप सत्य मार्ग पर चलना शुरू कर दें – तो एक दिन ब्रह्म से भेंट होकर रहेगी | जीवन में इस बात को छोड़ कि दूसरे क्या कर रहे हैं – हमें हमेशा अपने अंदर झांकना चाहिए – अध्यात्म के चश्मे से | ब्रह्म साक्षात्कार मुश्किल नहीं – जुनून है तो एक दिन ब्रह्म से भेंट अवश्य होगी |

 

What is the main Purpose of Life? मानव जीवन का मकसद | Vijay Kumar Atma Jnani

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