मेरा ५ वर्ष की आयु से लक्ष्य भगवान की खोज था | भटकने का प्रश्न ही कहां उठता है | हां, समय समय पर अपने विवेक को इस्तेमाल करना पड़ता था अन्यथा बिन चाबुक का घोड़ा तो किसी भी direction में दौड़ जाएगा | आजकल देखता हूं, शादीशुदा मर्द बगल से सुंदर लड़की गुजरी नहीं कि मुड़ कर देखने लगते हैं | ऐसे लोगों का जीवन में कोई गोल नहीं होता, कामयाब कैसे होंगे ?
जीवन में कामयाब होने के लिए मछली नहीं, उस मछली की आंख के कोर पर ध्यान केंद्रित करना होगा जहां निशाना लगाना है | बात सिर्फ अर्जुन की नहीं, हर प्राणी जो सफल होना चाहता है ऐसा ही करेगा | इच्छाओं की कमी नहीं, न ही साधनों की, कंट्रोल हमें ही करना है | इन्द्रियों पर कंट्रोल धीरे धीरे स्थापित होता है | अगर हम गौर करेंगे तो पाएंगे एक ही जीवन है, यूंही कैसे गुजरने दें |
What was the role of Arjuna in Mahabharata? आज का अर्जुन कौन आध्यात्मिक परिवेश में | Vijay Kumar