बरसात आते ही जैन धर्म की चौमासे की प्रथा याद आती है | कितनी रूढ़िवादिता है इस प्रथा में |
पुराने समय में जब सड़कें तो छोड़िए, पगडंडियां भी नहीं होती थी | बरसात के मौसम में जब खेतों व पगडंडियों पर ३ ~ ४ फुट पानी भरा होता था तो जैन मुनियों का चलना मुश्किल हो जाता था क्योंकि वे पैदल ही चलते हैं | इस कारण चौमासा की प्रथा शुरू हुई, यानि ४ मास (महीनों) के लिए वे एक ही स्थान पर ठहर जाया करते थे |
आज जब बढ़िया साधन उपलब्ध हैं और सड़कें भी दुरुस्त हैं, यह प्रथा अभी भी चल रही है | मैंने काफी मुनियों से इस बारे में बात की लेकिन बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन ? आज के समय में चौमासा करने का कोई औचित्य नहीं |
मैं जैन हूं लेकिन भारतीय दर्शन को मूल क्यों मानता हूं | Vijay Kumar Atma Jnani