लोग क्या कहेंगे – इसका कितना असर आप जीवन में लेकर चलते हैं ?


लोग क्या सोचेंगे/कहतें हैं इस बात कि फिक्र मैंने जिंदगी में 0% भी नहीं की | शुरू से स्वछंद जिंदगी जीया | 7 वर्ष की आयु में दादाजी से कुछ प्रश्न पूछे, सही उत्तर न मिलने पर, और दादाजी के स्वयं कहने पर, पप्पू – तेरे प्रश्नों का मेरे पास जवाब नहीं, मैं अपने रास्ते हो लिया | अध्यात्म में अपने अंदर उमड़ते हजारों प्रश्नों के उत्तर ढूंढने के लिए गुरु भी खोजा, लेकिन न मिलने पर निराश नहीं हुआ | ब्रह्म पर पूर्ण 100% आस्था जो थी |

 

बनाने वाला वो, देने वाला वो, तो चिंता मेरी कैसे हो सकती है ? एक दिन हताशा में ब्रह्म से पूछा, क्या मेरे गुरु बनोगे, तो हैरान रह गया जब ब्रह्म बोले – हां | गुस्से में तो था ही, मुंह से निकला, पहले नहीं हां कर सकते थे, तो जानते हैं ब्रह्म ने ठहाका मारकर क्या कहा, पहले पूछा ही नहीं | और अनजाने में ब्रह्म से दोस्ती हो गई, बहुत गहरी | धीरे धीरे यह बात समझ आ गई, हृदय से आती आवाज़ और किसी की नहीं, सारथी कृष्ण की है, यानी हमारी अपनी आत्मा |

 

बस फिर क्या था, 24 घंटे चिंतन में उतर गया (महर्षि रमण के बताए रास्ते के द्वारा) और 37 वर्ष की आयु में ब्रह्म का 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार हो गया | जीवन में अगर मैं लोगों के कहने में आ जाता/ या लोग क्या सोचेंगे यह सोच कर जीता तो मेरा इस जीवन में ब्रह्म का साक्षात्कार सिर्फ नामुमकिन ही नहीं, न जाने कितनी योनियों से टल जाता | जीवन का लक्ष्य 5 वर्ष की आयु में तय करना जीवन की सबसे बड़ी जीत थी |

 

What is the main Purpose of Life? मानव जीवन का मकसद | Vijay Kumar Atma Jnani

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