क्या साठ साल की उम्र में पैदल चार धाम की यात्रा उचित है ?


फिजूल के धार्मिक उन्मादो में वक़्त और ऊर्जा जाया करने से बेहतर है हम अध्यात्म/ ध्यान में जितना भी उतर सके – कहीं बेहतर होगा | इंसान पूरी जिंदगी रोज़ मंदिर जाने में व्यतीत कर देता है लेकिन अंततः मिलता क्या है – कुछ नहीं ? आत्मा जीवन में तभी आगे बढ़ेगी जब इंसान कर्मों की निर्जरा करेगा |

 

किसी भी प्रकार के धार्मिक कर्मकांडो, रीतिरिवाज़ों से कभी भी कर्मों की निर्जरा संभव नहीं | कर्मों की निर्जरा के लिए ध्यान में उतरना ही होगा और साथ में कर्म निष्काम भाव से करने होंगे | अगर हम यह सोचे हजारों km की तीर्थ यात्राओं से कर्मों की निर्जरा होती है तो हम गलत ही नहीं, ऐसी क्रियाओं से उल्टा और कर्मबंधन उत्पन्न होंगे

 

आज के समय में इंसान धार्मिक क्रियाओं में लगे रहने के बावजूद खुश नहीं, क्योंकि आध्यात्मिक स्तर पर उन्नति तो कुछ नहीं | अपनी मैं पर सवार होकर हम समाज में डुगडुगी तो पीट सकते हैं, अमुक ने इस उम्र में चारों धामों की पैदल यात्रा की, लेकिन उससे हमें मिला क्या ? हमारी मैं और प्रगाढ़ हो गई, कम होने की बजाय बढ़ गई ?

 

अगर हम सच्चे साधक हैं और ब्रह्म के नजदीक आना चाहते हैं तो शुद्ध भाव से ध्यान में चिंतन के माध्यम से उतरें | जितनी भी प्रगति होगी वह बेकार नहीं जाएगी – अगले जन्म में आत्मा उसी लेवल से शुरू करेगी |

 

Dhyan kaise karein | ध्यान करने की सही विधि | Vijay Kumar Atma Jnani

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