मानव जीवन में धर्म की सार्थकता क्या है ?


धर्म की सार्थकता को judge करने का अधिकार मनुष्य के पास है ही नहीं | क्यों ? धर्म वह नहीं जो मनुष्यों ने बना दिया है या मनुष्य जाति समझने लगी है | आजकल लोग धर्म को religion से जोड़ कर देखते हैं जो सर्वथा गलत है | धर्म का religion, मत, मजहब, पंथ इत्यादि से कोई connection नहीं |

 

1993 में ब्रह्म से साक्षात्कार के बाद उन्होंने मुझे धर्म की जो definition dictate की वो क्या थी – Your right to do what is just and right and not what was destined ! इसे अगर हिंदी में समझें तो ब्रह्म कहना चाहते हैं कि हर मनुष्य के अन्दर उसने free will दी है जिसका इस्तेमाल कर इंसान आसानी से ब्रह्म तक पहुंच सकता है |

 

हम प्रभु के गुलाम नहीं, हम system से बंधे भी नहीं हैं – हम जैसे चाहे जीवन व्यतीत कर सकते हैं | धर्म तो हर इंसान, जीव में शुरू से, जन्म से मौजूद है जो हमें हर पल जीने का सहारा देता है | इंसानों को मतों, मजहबों में बांट कर इंसान ने क्या पा लिया ? आज मानव जाति विनाश के कगार पर खड़ी है – क्यों ?

 

क्योंकि हम अपना गंतव्य भूल चुके हैं | हम भूल चुके हैं कि मनुष्य का एकमात्र goal ब्रह्म तक पहुंचना है | सोच कर देखें – अगर धर्म हर इंसान को अंदर से गाइड नहीं करे तो हम पशुओं से बेहतर नहीं | यह धर्म ही है जो मनुष्य को छोटी छोटी बातों पर मरने मारने से रोकता है | धर्म पर और ज्यादा वीडियो में देखें –

 

What is the true Meaning of Dharma? धर्म का सही अर्थ क्या है? Vijay Kumar Atma Jnani

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