ध्यान करते समय क्या सोचना चाहिए ?


अध्यात्म में ध्यान में उतरने के लिए सोच कैसी होनी चाहिए – इसके बारे में विभिन्न मत सुनने और देखने में आते हैं | अक्सर यह भ्रांति फैलाई जाती है कि पद्मासन की मुद्रा में बैठकर अंधेरे कमरे में रखी मोमबत्ती की लौ पर अपना ध्यान केंद्रित करों | ऐसा करने से क्या होगा – यह कभी नहीं बताया जाता ! क्यों ? क्योंकि आयोजकों को खुद नहीं मालूम ऐसा करने से क्या होगा ?

 

मैं जब 8 1/2 वर्ष का था तो एक रिश्तेदार गांव में किसी so-called meditation centre में ले गए | वहां मैंने पूछा – क्या करना होगा | उन्होंने कहा – वहीं करो जो सब कर रहे हैं | एक अंधेरे कमरे में बल्ब के centre पर ध्यान केंद्रित करने को कहा गया | पूरा 1 घंटा गुजर गया – कुछ नहीं हुआ | अगले दिन दोबारा वहीं ritual – जब समझ नहीं आया तो वापस आ गया |

 

महर्षि रमण के बारे में पढ़ा और सोचा तो अहसास हुआ वह तो तत्वज्ञानी थे | उनकी self enquiry (नेति नेति) की पद्धति follow करने की कोशिश की और सफलता हाथ लगी | तब समझ आया ध्यान में कुछ सोचना नहीं होता बल्कि अपने अंदर उमड़ते हजारों प्रश्नों को निरस्त करना होता है |

 

अगर हम जानना चाहें हम कौन हैं तो हमें ब्रह्माण्ड के उन गूढ़ रहस्यों में उलझना होगा जो किसी पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं होते | और हमें चिंतन में उतर यह जानना होगा कि ब्रह्म ने दुनियां क्यों बनाई और मनुष्यों की उत्पत्ति क्यों की | समय के साथ जैसे जैसे हम गूढ़ चिंतन में उतरेंगे – उत्तर हृदय से खुद आने लगेंगे | हमें एक एक कर सभी प्रश्नों को निरस्त करना है |

 

विचारों में शून्य की स्थिति तभी आएगी जब हमारे अंदर न कोई विचार आएगा न बाहर जाएगा | अंधेरे कमरे में bulb या मोमबत्ती की लौ पर ध्यान लगाने से कुछ नहीं होता | शवासन की मुद्रा में चिंतन में डूबकर हम हर प्रश्न का उत्तर खोज सकते हैं | यही ध्यान की सही प्रक्रिया है जिसे follow करके कोई भी साधक निर्विकल्प समाधि की अवस्था में पहुंच सकता है |

 

Dhyan kaise karein | ध्यान करने की सही विधि | Vijay Kumar Atma Jnani

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