मनुष्यों का जन्मजात शत्रु हमेशा एक ही होता है – हमारी जन्म से ही नकारात्मक सोच ! यह नकारात्मक सोच ही तो है जो एक इंसान को राजा और दूसरे को रंक बनाती है | हम शुरू से ही खुद के शत्रु हैं | थोड़ी सी भी सकारात्मक सोच अगर हम अपने व्यवहार में ले आएं तो सतयुग न आ जाए ?
बचपन से मनुष्य किसी न किसी को कोसता ही रहता है – बिना कारण कोसेगा, भगवान को भी नहीं छोड़ेगा | अगर माता पिता की सोच सकारात्मक नहीं, तो बच्चा बचपन से ही अपने दोस्तों को कोसेगा | अगर माता पिता ने अच्छे सकारात्मक संस्कार दिए – तो वह बच्चा हमेशा प्रभु को भी याद करेगा और समय समय पर उनका शुक्रिया भी अदा करेगा – कैसे ? औरों की मदद करके !
ये भारतीय संस्कार ही तो हैं जो भारत पूरे विश्व में आज भी सबसे अग्रणी है – वेदों, उपनिषदों और भगवद गीता के ज्ञान के कारण | कुछ वर्ष पहले US ने नरेंद्र दामोदरदास मोदी को 9 साल तक अपने visa से वंचित रक्खा और आज वही नरेंद्र मोदी उनकी आंखों का तारा बना हुआ है – कैसे ? सिर्फ अपनी सकारात्मक सोच के कारण |
अगर इंसान एक दूसरे को कोसना छोड़ दे, दूसरों में कमियां न निकाले तो आज से ही सतयुग का आरंभ समझो | जैन धर्म के 24 वे तीर्थंकर भगवान महावीर कहा करते थे – जियो और जीने दो – क्यों ? महावीर सम भाव की शिक्षा देते थे – तटस्थ रहो, किसी से वैर मत करो | जैन धर्म की दो कवायतें – अनेकान्तवाद और स्यादवाद का पूरे विश्व में कोई सानी नहीं |
ये कवायते सकारात्मक सोच को बढ़ावा देती हैं – किसी भी बात के कई पहलू हो सकते हैं – जरूरी तो नहीं कि हमेशा हम ही सही हों | एक अंधे के हाथ में हाथी का पैर है तो वह हाथी को एक स्थंब की भांति ही समझेगा | जिसके हाथ में हाथी की पूंछ – तो वह हाथी को सर्प की भांति ही समझेगा | गलत दोनों नहीं | किसी की सोच अपरिपक्व है तो उसे दोष देने से फायदा ? दोष अगर खुद में है तो दूसरों को बुरा भला कहने से क्या होगा ?
How do you express Gratitude in words to God? भगवान की कृपा के प्रति कृतज्ञता | Vijay Kumar