धरती पर हर मनुष्य 11 लाख योनियों के फेर से बंधा है | इन 11 लाख योनियों में हम किस योनि में स्थित है, हमें खुद नहीं मालूम ! यह मानव शरीर हमारी आत्मा ने धारण किया है – जब तक हर मनुष्य 84 लाखवी योनि में पहुंच रामकृष्ण परमहंस या महर्षि रमण, एक तत्वज्ञानी नहीं हो जाता – आत्मा शरीर की मृत्यु होने पर नया शरीर धारण करती रहेगी | यह क्रम अबाध रूप से चलता रहेगा – बिना किसी विघ्न के |
जब 84 लाख्वी योनि में पहुंच आत्मा पूर्ण शुद्धि प्राप्त कर लेगी तो आत्मा को नया शरीर धारण करने की आवश्यकता ही नहीं रहती | आत्मा तब तक नया शरीर धारण करती है जब तक मनुष्य कर्मों की पूर्ण निर्जरा न कर ले | आत्मा स्वयं की शुद्धि खुद नहीं कर सकती सो उसे कर्म करने के लिए शरीर धारण करना पड़ता है | अगर आप पूर्ण शुद्धि चाहते हैं तो अध्यात्म में उतरें और कोशिश करें पहले स्वामी विवेकानंद और फिर रामकृष्ण परमहंस बनने की |
यहां यह बात अवश्य ध्यान रखनी चाहिए कि वर्तमान शरीर एक ही है यानी हम ! अगला नया शरीर आत्मा धारण करेगी, हम मनुष्य नहीं | हमारे लिए तो यह पहला और आखिरी जीवन है |
1.1 million manifestations in Human form? मनुष्य रूप में ११ लाख योनियों का सफर | Vijay Kumar