हमारी सोच सकारात्मक है, मेहनत करने से हम पीछे हटते नहीं (हम किसी से कम नहीं) फिर भी असफलता ही हाथ लगती है – कारण मूलतः एक ही है – पिछले जन्मों का एकत्रित नेगेटिव प्रारब्ध कर्मफल |
मान लीजिए हम karmic index के क्रमांक 12 पर स्थित हैं | इस जन्म में हमने बहुत मेहनत कर karmic scale पर +4 हासिल किए तो कार्मिक इंडेक्स 16 पर हमें सफलता और खुशी – दोनों मिलने चाहिए | लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्यों ?
जब हम karmic index 16 पर पहुंचे तो पिछले जन्मों का नेगेटिव प्रारब्ध (जो -6) था फलित हो गया और हम रह गए karmic index 10 पर | यानि पहले से भी नीचे गिर गए – तो हिस्से में सुख आएगा या दुख ? इसीलिए भगवद गीता में कृष्ण इस बात पर जोर देते हैं कि हमेशा पुण्य कर्म में लिप्त रहें जिससे प्रारब्ध नेगेटिव से पॉजिटिव हो जाए |
2012 के US प्रवास के दौरान अख़बार में पढ़ा – एक washer woman (धोबिन) जो किसी तरह से अपनी रोटी रोजी का जुगाड करती थी, की 780 करोड़ की लॉटरी लगी है | छप्पर फाड़कर नहीं, साक्षात कुबेर का खजाना हाथ आ गया | पिछले जन्मों का संचित प्रारब्ध कर्मफल इतना अधिक हो सकता है – कोई सोच सकता है क्या ?
अगर हम इस जन्म में सफल होना चाहते हैं तो हमें हमेशा पुण्य कर्म में लगे रहना चाहिए जिससे पिछले जन्मों का अगर कोई नेगेटिव प्रारब्ध कर्मफल है तो वह neutralize हो जाए और हम हमेशा (+) में रहें | ऐसा करना इस बात की guarantee नहीं की हमारे साथ बुरा नहीं होगा लेकिन अनजाने नेगेटिव प्रारब्ध से बचने की कोशिश तो हम कर ही सकते हैं |
ज्योतिष शास्त्र कर्म प्रधान है | कर्म बड़ा या भाग्य | Astrology and Karma theory | Vijay Kumar