इस जगत में ब्रह्मचर्य से नशीला कुछ है ही नहीं ?


नशीला – अगर किसी इंसान में सामर्थ्य हो 100 शराब की बोतलें एक साथ पीने की, तो भी अखंड ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए जो अनुभूति होती है उसे शब्दों में बयान किया ही नहीं जा सकता | जब हम ब्रह्म के निकट होते हैं तो ऐसा लगता है हम सातवे आसमान पर विराजमान हैं | बस हम और हमारी अनुभूतियां – वाह ! क्या नजारा होता है |

 

बोतल का नशा चढ़ जाता है और इंसान बेहोश, लेकिन आध्यात्मिक नशा आपको ब्रह्म के और नजदीक ले आता है |

 

आध्यात्मिक अनुभूतियां इस जगत की नहीं होती | ऐसा लगता है हम किसी स्वप्न नगरी में स्थित हैं, कोई अद्वितीय सपना देख रहे हैं | ऐसा क्यों होता है | इसका मूल कारण है – जब हम आध्यात्मिक प्रगति करते हैं तो बंद पड़ा मस्तिष्क का हिस्सा जब खुलता है तो शुरू में अत्यंत असहनीय सिरदर्द होता है लेकिन उसके गुजर जाने के बाद हम सातवे आसमान पर होते हैं |

 

भौतिक जगत का नशा और आध्यात्मिक उन्नति का खुमार – दोनों में कोई सामंजस्य नहीं | आध्यात्मिक प्रगति का नशा सिर्फ एक भुक्तभोगी ही जान सकता है | अध्यात्म सही मायने में अनुभव का विषय है | जब तक आप खुद अनुभव नहीं करेंगे, विश्वास नहीं होगा |

 

Why do I feel headache after Meditation? ध्यान में सिरदर्द क्यों होता है | Vijay Kumar Atma Jnani

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