भगवान को यह संसार बनाने की जरूरत क्या पड़ गई ?


वह एक प्रश्न जिसको पूछने के लिए शास्त्र भी मना करते हैं और खुद ब्रह्म ने भी निषिद्ध किया है वह क्या है, ‘भगवान ने यह दुनियां क्यों बनाई‘ ? शायद भगवान भी इस बात से अनभिज्ञ हैं | क्या वाकई में ? शायद ?

 

ब्रह्माण्ड कैसे बनता है ? जब पिछले ब्रह्माण्ड में प्रलय आती है तो ब्रह्माण्ड सिमट कर अस्थ अंगुष्ठ के आकार में आ जाता है, यानि ब्रह्म अपने मूल स्वरूप में वापस आ जाते हैं | यह अद्वितीय शक्ति, जिसे हम ब्रह्म कहते हैं (जिसका आकार अस्थ अंगुष्ठ का है), स्वयं को अपने मूल शुद्ध रूप में क्षण-भर के लिए भी रोक नहीं पाता है और फिर से Big Bang के द्वारा फटता है | और उत्पन्न होता है नया ब्रह्माण्ड, एक नई शुरुआत |

 

इसलिए हम शाब्दिक रूप में कह सकते हैं कि ब्रह्म भी ब्रह्माण्ड का बनना रोक नहीं पाते या सकते | इसीलिए शास्त्रों में कथन है कि ब्रह्म, आत्माएं और ब्रह्माण्ड अनादि हैं (जिनका न आदि है न अंत) | जैसे ही ब्रह्म खुद को प्रस्फुटित करते हैं और प्रलय के समय अपने शुद्ध स्वरूप को पा लेते हैं, उसके बाद फिर प्रस्फुटित हो नए ब्रह्माण्ड की संरचना करते हैं | यह क्रम अनादि है (from times immemorial) |

 

क्या ऊपरी बातों से कोई यह साबित कर सकता है ब्रह्म ने यह संसार क्यों बनाया ? कभी नहीं | यहां यह समझना जरूरी है कि ब्रह्म मतलब सभी आत्माएं जब 84 लाखवी योनि में अपने शुद्ध स्वरूप में आती हैं तो आधे अंगूठे का आकार लेती हैं और उसे ही हम ब्रह्म कहते हैं |

 

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