ब्रह्म ने पूरा संसार रचाया | खुद वह दृष्टा की भांति काम करता है तो जरूरत हुई ऐसी दुनियां की जिसमे कर्म के आधार पर काम करने वाले जीव जंतु हों | पूरा संसार स्वयं संचालित – धर्म और कर्म के आधार पर टिका और चलता संसार |
और आत्माओं का 84 लाख योनियों का भ्रमण शुरू हो गया | इसी श्रृंखला में आखिरी योनि बनाई मनुष्य की, जो विवेक से काम कर सके और खुद को 84 लाखवी योनि में स्थापित कर सके | और साथ में बसाया भारत जहां के ऋषि मुनियों ने सीधे प्रभु से वेद ग्रहण किए |
और फिर क्या था ? वेदों के आधार पर ऋषियों ने उपनिषदों और भगवद गीता का ज्ञान रचा | इंसान भगवान की बनाई हुई सृष्टि के पूरक हैं | आत्मा को उसके अंत (logical end) तक पहुंचाना मनुष्य का काम है |
जीवन की लंबी दौड़ में आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस व महर्षि रमण का आना इस बात का सूचक है कि भारतीय अपनी भगवान के प्रति जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं | हर 100 ~ 150 वर्षों में किसी न किसी साधक को आत्मज्ञान प्राप्त करने की होड़ उठती है और वह कामयाब भी हो जाता है | निकट भविष्य में कल्कि अवतार आने वाले हैं सतयुग की शुरुआत करने |
Are there 8.4 million species on Earth? चौरासी लाख योनियों का सच | Vijay Kumar Atma Jnani