श्रीमद्भगवद्गीता व उपनिषद् इस बात को बार बार प्रतिपादित करते हैं कि ब्रह्म ही वह अविनाशी सनातन पुरुष है जिसने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की रचना की | यह अविनाशी पुरुष और कोई नहीं बल्कि ब्रह्माण्ड में व्याप्त सभी आत्माओं का समूह ही तो है | जब ब्रह्माण्ड की सभी आत्माएं मोक्ष की स्थिति के बाद शुद्ध रूप में आ जाती हैं – तो सभी शुद्ध आत्माएं अस्थ अंगुष्ठ (आधे अंगूठे) का आकार लेती हैं | बस इसी शक्ति को ब्रह्म, अविनाशी कहते हैं |
अविनाशी इसलिए क्योंकि ब्रह्म का कभी अंत नहीं होता और न ही आगमन – अविनाशी ब्रह्म हमेशा से अनादि हैं |
अविनाशी ब्रह्म की रूप रेखा देखिए – हर आत्मा का स्वयं का तापमान करोड़ों degrees centigrade होता है – तो ब्रह्म का ताप कितना होगा – करोड़ों, अरबों, खरबों, नील, पद्म, शंख, महाशंख और इससे भी ज्यादा | तब भी धरती पर लोग इस बात की उम्मीद रखते हैं कि अविनाशी प्रभु चरणों में स्थान दे दें | अज्ञानता की पराकाष्ठा नहीं | हम खुद एक आत्मा हैं और सूर्य के गर्भ में स्थित हैं (करोड़ों degrees ताप के बीच) – और कर्मों की निर्जरा के लिए धरती पर रख छोड़ा है एक शरीर – जिसे मनुष्य कहते हैं |
भगवद गीता एक ऐसा पवित्र ग्रंथ है जिसे अगर हम आत्मसात कर लें तो अविनाशी ब्रह्म और उसके बनाए ब्रह्माण्ड की पूरी गाथा समझ आ जाए |
Difference between Atman and Brahman | आत्मा परमात्मा में भेद | Vijay Kumar Atma Jnani