जब से हम पैदा होते हैं हम दो जीवन जीते हैं | एक रास्ता हमें स्कूल ले जाता है जहां हमें विद्या दी जाती है | और विज्ञान की शिक्षा विद्या के तहत आती है | जैसे हम बड़ी क्लास में पहुंच जाते हैं हमें विज्ञान (science) की शिक्षा दी जाती है | और जब मंदिर जाते हैं तो मन में कई खयाल आते हैं – हम कौन हैं, कहां से आए हैं, भगवान कौन होता है इत्यादि |
दो सोच साथ साथ चलती रहती हैं – स्कूल में विद्या ग्रहण करने की और पंडितजी से भगवान के बारे में जानने की |
माता पिता, घर के बुजुर्गों की बातों से यह तो समझ में आ जाता है कि बड़े होकर रोटी रोज़ी कमाने के लिए हमें विद्या की जरूरत होती है | अगर हम scientist बनते हैं तो हमारा भगवान में विश्वास पूर्ण नहीं | Science भगवान के होने का proof मांगती है | इसके विपरीत मेरा दोस्त engineer बनता है |
मंदिर हम दोनों जाते हैं लेकिन मेरे दोस्त को भगवान के होने में शक नहीं | उसका भगवान में विश्वास नहीं पूर्ण आस्था है | Engineer बनकर भी वह भगवान से दूर नहीं लेकिन जो Scientist बना उसे भगवान के होने का proof चाहिए | Science engineer ने भी पढ़ी लेकिन तर्क के basis पर भगवान में आस्था बनी रही |
Finally हम दृढ़ता के साथ कह सकते हैं scientists (पूरी दुनिया में) भगवान को ठीक से समझे ही नहीं और न कभी समझ पाएंगे | भगवान के होने या न होने में तर्क नहीं चलता, यह सिर्फ और सिर्फ आस्था का विषय है | अगर हमें भगवान को समझना है तो अध्यात्म में उतरना ही होगा |
What is the real meaning of spirituality? अध्यात्म का वास्तविक अर्थ क्या है ? Vijay Kumar Atma Jnani