क्या भक्ति मार्ग से साक्षात्कार होते हैं ?


रामकृष्ण परमहंस भक्तिमार्ग के बहुत बड़े अनुयाई थे – Kali मां के अनन्य भक्त | उन्होंने भगवान तक पहुंचने के लिए भक्ति मार्ग चुना – कारण पहले उनके भाई मंदिर के पुजारी थे और फिर वह खुद | मां काली की भक्ति करते करते उन्हें अहसास हुआ कि भगवान तक भक्ति के रास्ते नहीं पहुंचा जा सकता | सो रामकृष्ण परमहंस ने तोतापुरी के तत्वधान में भक्ति मार्ग छोड़ ज्ञान मार्ग अपना लिया | रामकृष्ण परमहंस ज्ञानमार्ग के रास्ते गहन अध्यात्म में उतर गए और अंततः ब्रह्मलीन हो गए |

 

रामकृष्ण परमहंस के बाद आए स्वामी विवेकानंद जो मूलतः ज्ञानयोग के सहारे ब्रह्म तक पहुंचने का रास्ता खोजने लगे | रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात के बाद स्वामी विवेकानंद के पास ज्ञानयोग के रास्ते ब्रह्म तक पहुंचने का मार्ग था लेकिन उनकी जीवन में priorities कुछ और थी | उन्होंने रामकृष्ण परमहंस को सीधे मुंह कह दिया कि वे इस जन्म में ब्रह्म को नहीं पाना चाहते और अपने रास्ते निकल गए | स्वामी विवेकानंद अपनी संगत के कुछ जरूरतमंद लोगों की सेवा में लीन हो गए |

 

इस बीच आए महर्षि रमण – जो शुरू से ही ज्ञानमार्ग पर चले | उन्हें इस बात का अहसास था कि भक्तिमार्ग जो समर्पण मांगता है वह इस कलियुग में संभव नहीं | ज्ञान मार्ग की राह में उन्होंने self enquiry (नेति नेति) की practice का सुझाव दिया | यह एक बहुत ही अच्छा माध्यम है ब्रह्म तक पहुंचने का |

 

चिंतन (contemplation) करने के लिए शवासन की मुद्रा में लेटकर नेति नेति द्वारा कर्मों की निर्जरा से बेहतर कुछ भी नहीं | 9 वर्ष की आयु से मैंने महर्षि रमण द्वारा प्रतिपादित self enquiry नेति नेति के रास्ते को चुना | 28 वर्ष तो लगे और अंततः 37 की आयु में ब्रह्म से 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार हो ही गया |

 

आज के कलियुग में मैं दृढ़ता के साथ कह सकता हूं कि ब्रह्म तक पहुंचना है तो सीधे ज्ञानमार्गी बनों – नहीं तो इंतजार करते रह जाओगे | कुछ भी कर लो – भक्ति मार्ग के द्वार से साक्षात्कार नहीं होगा | 1886 में रामकृष्ण परमहंस चले गए और 1950 में महर्षि रमण – पिछले 150 वर्षों में पूरी धरती पर सिर्फ इन्हीं दो ज्ञानमार्गियों को ब्रह्म साक्षात्कार हुआ |

 

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