भगवान् शिव को भोलेनाथ क्यों कहा जाता है ?


भोलापन क्या जाहिर करता है कि उस इंसान के अंदर छल कपट नदारद है, वह धोखा देने की नीयत नहीं रखता | अगर हम समुद्र मंथन की गाथा का सार देखेंगे तो समझ आयेगा कि तत्वज्ञानी और अंततः शिव वही साधक बनता है जो भोला है, मानव कल्याण में लगा है, छल कपट से दूर है | जो साधक दूसरों की भलाई में संलग्न है, जो खुद के बारे में भी नहीं सोचता, वह भोला तो होगा ही |

 

भोलापन सिर्फ बच्चों में दिखता है और कहते हैं बच्चे भगवान का रूप होते हैं | यह बात क्या जाहिर करती है ? शिव बनने के लिए, शिव के लेवल तक पहुंचने के लिए जब तक साधक में भोलापन नहीं होगा, वह सही ढंग से ध्यान में उतर ही नहीं सकता | भोलापन मनुष्य जीवन की कमजोरी नहीं अपितु वह खास हकीकत है जिसके सहारे साधक परमात्मा के नजदीक पहुंचता है | एक भोला इंसान ही औरों के हित के बारे में सोच सकता है |

 

अध्यात्म के रास्ते पर चलकर रामकृष्ण परमहंस अंततः शिव के लेवल पर पहुंच गए | रामकृष्ण परमहंस जब हाथ में घी का करछा लिए कुत्ते के पीछे भागते थे तो लोग उन्हें पागल समझते थे | रामकृष्ण परमहंस को पागल समझना मानवता की सबसे बड़ी भूल थी, वह तो लोगों के भले के प्रति बेहद सजग साधक थे, अव्वल दर्जे के भोले |

 

जब साधक को हर दूसरे जीव में भगवान नजर आने लगें तो आप उसे भोला नहीं तो और क्या कहेंगे ?

 

Samudra Manthan ki gatha | समुद्र मंथन की गाथा | Vijay Kumar Atma Jnani

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.