महादेव की तीसरी आंख कब खुलती है ?


अगर हम आध्यात्मिक दृष्टि से देखें – महादेव, शिव की उपाधि उस तत्वज्ञानी को दी जाती है जब वह पूर्ण कुण्डलिनी जागरण के बाद तीसरा नेत्र खोलने में कामयाब हो जाता है | तीसरा नेत्र यानि ज्ञान चक्षु – जब हम कर्मों की पूर्ण निर्जरा कर अपने मस्तिष्क को 100% एक्टिवेट कर लेते हैं तो हम reservoir of mind plus से जुड़ जाते हैं जहां से पूरे ब्रह्मांड का ज्ञान आता है |

 

ऐसा होते ही भगवद गीता का मर्म खुद समझ आ जाता है और यही उपनिषदों में निहित ज्ञान के साथ होता है | धरती पर कोई भी इंसान अध्यात्म में उतर, ध्यान/ चिंतन के माध्यम से तीसरा नेत्र जागृत कर सकता है | यह stage है जब हमारा सहस्त्रार पूरा खुल जाता है | मोक्ष की स्थिति तक पहुंचने से पहले हर तत्वज्ञानी शिव कहलाता है |

 

महादेव के गले में पड़े सर्प इस बात का सूचक हैं कि साधक/ तत्वज्ञानी की कुण्डलिनी पूरी जागृत है | महादेव को नीलकंठी भी इसीलिए कहते हैं क्योंकि वह अपने अंदर बनते विष को गले में धारण कर लेता है – इसी गले में रोके विष के कारण ही रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हुई |

 

महादेव की तीसरी आंख का खुलना यह confirm करता है कि जो हो गया वह irreversible है – एक बार कली पुष्प बन गई तो वापस कली नहीं बन सकती | आध्यात्मिक सफर की यह सबसे बड़ी उपलब्धि है | इसीलिए तत्वज्ञानी को अंततः मोक्ष ही होता है | अगर हम समुद्र मंथन की गाथा का अवलोकन करेंगे तो पाएंगे कि यही यथार्थ सत्य है |

 

Samudra Manthan ki gatha | समुद्र मंथन की गाथा | Vijay Kumar Atma Jnani

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