अध्यात्म के अनुसार जीवन मोह माया के सिवाय कुछ भी नहीं – जैसे बड़ी हो रही हूँ रिश्तों में दिलचस्पी आने लगी है क्या यह सही है ?


जब से बच्चा होश संभालता है (लगभग 3 ~ 5 की उम्र) तो 2 बातें बच्चा observe करता है | एक माता पिता हैं जो काम करते हैं और सब ठीक ठाक चलता रहता है | कभी कभार मां मंदिर लेकर जाती है और कहती है भगवान को हाथ जोड़ो | बस यहीं से confusion शुरू होता है | ये भगवान कौन हैं और भला मूर्तियों में छिपे क्यों बैठे हैं ?

 

बच्चा बड़ा हो जाता है और उसकी समझ में आता है जैसे वह पैदा हुआ, उसके माता पिता भी पैदा हुए | दुनियां तो भगवान ने बनाई है जिसको आज तक किसी ने देखा नहीं | जब कभी किसी सत्संग में जाने का मौका मिला या हाथ में कोई आध्यात्मिक पुस्तक आई तो अहसास हुआ कि एक आत्मा होती है और यह शरीर आत्मा ने किसी कारण से लिया है |

 

अब हम बड़े हो चुके हैं – लगभग 15 ~ 16 वर्ष के और हमारे सामने 2 विकल्प हैं | एक तो हम स्वामी विवेकानंद या महर्षि रमण की तरह ब्रह्मचारी बन अध्यात्म में पूरी तरह उतर जाएं और भगवान की खोज में निकल जाएं या पढ़ाई लिखाई कर लाइफ में settle कर जाएं |

 

Choice हमारी है – अगर भौतिक जीवन जीने का तय किया है तो घर परिवार चलाने के लिए किसी profession में उतरना होगा, तभी घर में पैसे आएंगे और वक़्त के साथ शादी कर जीवन को आगे बढ़ाएंगे | इसलिए भगवान ने मनुष्य को free will और विवेक दिया है | बस यह बात हमेशा ध्यान रहे जीवन का अंतिम goal आत्मा का होता है कि मनुष्य अध्यात्म में उतर मोक्ष पा जाए |

 

What is the main Purpose of Life? मानव जीवन का मकसद | Vijay Kumar Atma Jnani

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.