माया जाल से हम क्या समझते हैं ?


आदि शंकराचार्य की माया की doctrine क्या कहती है कि पूरा जगत माया है, actual में exist ही नहीं करता | अगर करता भी है तो ब्रह्म के विचारों में | जैसे हम सपना देखते हैं और जागते ही सब कुछ विलीन हो जाता है उसी प्रकार पूरा जगत मात्र ब्रह्म के सपनों में exist करता है अन्यथा नहीं | क्यों ?

 

सोचिए अगर हमारा ब्रह्माण्ड actual में exist करता है तो उसकी boundary होनी चाहिए | अगर boundary है तो उसके पीछे क्या ? सोचने पर अहसास होता है ब्रह्माण्ड की तो कोई boundary चारदीवारी नहीं | अगर boundary नहीं तो पूरा ब्रह्माण्ड सिर्फ और सिर्फ ब्रह्म के खयालों में exist कर सकता है अन्यथा नहीं |

 

Adi Shankaracharya की Doctrine of Maya गलत नहीं, हो भी नहीं सकती | दूसरी दृष्टि से देखें – सभी जीव इस मायाजाल यानि धरती पर आ तो जाते हैं लेकिन छुटकारा कब मिलेगा किसी को नहीं मालूम |

 

इसी Doctrine of Maya के बूते पर आदि शंकराचार्य ने अद्वैत की theory आगे बढ़ाई | अगर ब्रह्माण्ड exist ही नहीं करता तो सत्ता तो सिर्फ ब्रह्म की हुई – यानि ब्रह्म के अलावा इस मायावी जगत में और कुछ exist नहीं करता | Doctrine of Advait यही कहती है कि ब्रह्मांड में द्वैत की सत्ता हो ही नहीं सकती – सिर्फ और सिर्फ ब्रह्म exist करते हैं |

 

अभिमन्यु कांड से हम ब्रह्म की मायावी रचना को भलीभांति समझ सकते हैं –

 

अभिमन्यु महाभारत युद्ध में चक्रव्यूह में फँस क्यों मारा गया, छिपा मर्म आध्यात्मिक परिपेक्ष में

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