जिंदगी में सबसे कठिन मोड़ तब आता है जब अध्यात्म की राह पर हमें मोह काटना होता है | महाभारत की लड़ाई में अपनों को दुश्मन सेना में देख अर्जुन विचलित हो गया – कृष्ण से कहने लगा मुझे कायर बनना स्वीकार है लेकिन भीष्म पितामह (नाना), गुरु द्रोणाचार्य के विरुद्ध हथियार उठाना बिल्कुल मंजूर नहीं |
तब कृष्ण तत्वज्ञान के जरिए समझाते हैं, जिन्हें तुम अपना कह रहे हो वह तुम्हारे जन्म से पहले भी थे और तुम्हारी मृत्यु के बाद भी रहेंगे | आत्मा न पैदा होती है न मरती है और तुम्हे भी एक आत्मा ने धारण किया है | धर्म के उत्थान के लिए पापियों को मारना श्रेयस्कर है न कि कायरता दिखाना |
अधर्म को नष्ट करना ही होगा और अंततः अर्जुन सत्य के आगे नतमस्तक हो जाता है और लड़ने के लिए खुद को तैयार करने लगता है | वह समझ चुका है भीष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य अधर्म का साथ दे रहे हैं |
भगवद गीता के माध्यम से महर्षि वेदव्यास समझाते हैं कि आध्यात्मिक जीवन में एक दिन मोह काटना ही होगा | अपने जो हम पर आश्रित हैं, माता पिता, बहन भाई, बच्चे, नाते रिश्तेदार, दोस्त और अन्य प्रिय जनता जनार्दन – सभी से मोहविमुख होना ही होगा अगर हम तत्वज्ञानी होना चाहते हैं | आध्यात्मिक सफर की ये सबसे बड़ी मजबूरी है |
महर्षि वेदव्यास और महाभारत महाकाव्य का आध्यात्मिक सच | Vijay Kumar Atma Jnani