मोह का सही अर्थ क्या होता है – आध्यात्मिक दृष्टि से इसे गलत क्यों कहा जाता है ?


आध्यात्मिक सफर में जब हम अपनी मैं को खत्म करने की कोशिश करेंगे तो अपनों का मोह आड़े हाथों आएगा | करीब करीब सभी इन्द्रियों पर control स्थापित हो जाएगा लेकिन मोह का क्या ?

 

अपने बड़े होते बच्चों के लिए निर्मोही हो गए लेकिन पोते पोतियों, धेवते धेवतियों का क्या ? स्कूल से आते ही नाना, दादा कहकर जो लिपटते हैं उन बच्चों के सामने निर्मोही कैसे हों | मूल से साथ तो छूट जाएगा लेकिन interest भारतीयों को ज्यादा प्यारा होता है |

 

एक महिला सड़क पर जा रही है | सड़क किनारे रोते बिलखते बच्चे को देख एक बार जाकर पूछेगी जरूर, बेटा क्या हुआ ? क्या कभी किसी पुरुष को ऐसा करते देखा है ? बुड्ढों की बात छोड़िए |

 

यह मोह है जो काटे नहीं कटता | इसी कारण पूरे भारतीय इतिहास में पिछले 10,800 वर्षों में सिर्फ 2 नारियों को तत्वज्ञान पाने का मौका मिला – संत Gargi और Maitreyi (महर्षि याज्ञवल्क्य की दूसरी पत्नी) | इसीलिए शास्त्रों में यह ज़िक्र आता है अध्यात्म के रास्ते पर चलने के लिए महिलाओं को पुरुष योनि में आना ही होगा |

 

दिल्ली के Gargi और Maitreyi कॉलेज इसके गवाह हैं | मोह कट जाए तो मैं से पीछा छूटे और पांचों इन्द्रियों और मन पर पूर्ण नियंत्रण आ जाए | उसके बाद बस प्रारब्ध काटना रह जाएगा | आध्यात्मिक दृष्टि में मोह गलत नहीं बस काटना बेहद मुश्किल है |

 

What is Moha | मोह क्या है | Vijay Kumar Atma Jnani

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