क्या आप परिणाम के बारे में न सोचते हुए अपने प्रयासों को मजबूती प्रदान करते हैं ?


कर्मफल तो वे मील के पत्थर हैं जो जीवन के सफर में कभी खुशी – कभी गम लेकर आते हैं | कर्म तो फलित होता रहता है लेकिन जीवन का लक्ष्य तो हमेशा एक ही रहेगा और वह भी अंतिम | जीवन कभी अंतरिम परिणामों के सहारे नहीं जीया जा सकता न जीना चाहिए | सारे कर्म हमेशा अंतिम लक्ष्य की ओर निर्देशित होने चाहिएं – तभी सफलता हाथ लगेगी |

 

अंतरिम परिणाम अगर और प्रयास मांगते हैं तो वैसा ही करना चाहिए | परिणाम अच्छा हो या बुरा प्रयासों में कमी कभी नहीं रहनी चाहिए | अर्जुन की नजर हर समय मछली कि आंख की पुतली के मध्य टिकी थी – तभी वह अपने target को भेदने में सफल हुआ | अंतरिम परिणामों से उसे कभी मतलब नहीं रहा – उसे अपने ऊपर, ब्रह्म में विश्वास था सो जीत गया |

 

5 वर्ष की आयु में मैंने तय किया इसी जन्म में ब्रह्म की खोज में जाऊंगा | कितने ही अंतरिम परिणामों से सामना हुआ लेकिन मन कभी भी अवांछित परिणामों से परेशान नहीं हुआ | सारी कोशिशें हमेशा मुख्य लक्ष्य की ओर सधी रहतीं थीं | अंततः 37 वर्ष की आयु में 32 वर्ष की तपस्या रंग लाई और ब्रह्म ने 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार दिया – जीवन के आखिरी छोर पर आखिरकार पहुंच ही गया |

 

What was the role of Arjuna in Mahabharata? आज का अर्जुन कौन आध्यात्मिक परिवेश में | Vijay Kumar

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