पहले सृष्टि बनी और आत्माओं ने ब्रह्मांडीय सफर में अशुद्धियां ग्रहण कर लीं और धरती मां के अस्तित्व में आते ही आत्माओं का 84 लाख योनियों का सफर शुरू हो गया | पहली 73 लाख योनियां तो कीट पतंगों, पेड़ पौधों और पशु पक्षियों की योनियों में गुजर गईं |
मनुष्य रूप में 11 लाख योनियां होती हैं और मनुष्य को 84 लाखवी योनि में स्थापित होने के लिए, तवज्ञान प्राप्त करने के लिए कुछ करना होगा | विद्या के द्वारा अर्जित bookish knowledge काम नहीं आएगी |
तो ब्रह्म ने सबसे पहले कुछ उच्चतम कोटि के ऋषियों को वेदों का ज्ञान श्रुति द्वारा प्रेषित किया | महर्षि वेदव्यास ने फैले हुए वेदों के ज्ञान को संग्रहित करके 4 वेदों में स्थापित किया | लेकिन वेदों का ज्ञान आम मानव तक पहुंच नहीं पा रहा था | पहुंचे हुए scholars भी वेदों के अंदर निहित ज्ञान को समझने में कठिनाई महसूस कर रहे थे |
कुछ ऋषियों के समूह ने उपनिषद प्रपादित करने शुरू किए | हर उपनिषद एक ऋषि द्वारा रचा गया है और मूलतः एक ही विषय पर आधारित/ संबंधित है | किसी ऋषि ने आत्मा, किसी ने ब्रह्म तो किसी ने मोक्ष विषय को केंद्र बनाया | इस तरह हर विषय को विस्तार से विवेचना मिली और गूढ़ तत्व scholars और साधकों तक पहुंचा |
आम जनता तक गूढ़ तत्व पहुंच सके तो महर्षि वेदव्यास ने कहानियों के माध्यम से ज्ञान पहुंचाने की कोशिश की और पुराण अस्तित्व में आ गए | आम साधक आराम से सारा ज्ञान एक जगह ग्रहण कर सके तो महर्षि वेदव्यास ने महाभारत महाकाव्य की रचना की और कृष्ण अर्जुन उवाच के माध्यम से भगवद गीता का ज्ञान साधकों तक पहुंचाया |
और हर मनुष्य शास्त्रों में निहित ज्ञान में डूबकर मोक्ष ले सकता है, जन्म और मृत्यु के भंवर जाल से अपने को निकालकर अपने शुद्ध आत्मस्वरुप को वापस पा सकता है, एक शुद्ध आत्मा बन सकता है |
महर्षि वेदव्यास और महाभारत महाकाव्य का आध्यात्मिक सच | Vijay Kumar Atma Jnani