पठन पाठन, किताबी ज्ञान से हम आजीविका अर्जित करते हैं, अध्यात्म में पठन पाठन के अतिरिक्त चिंतन (contemplation) की आवश्यकता होती है जिसके द्वारा हम ब्रह्म तक पहुंच सकते हैं, उसमें विलय कर सकते हैं |
अध्यात्म में भगवान के बारे में संपूर्ण ज्ञान हासिल करने का कोई महत्व नहीं – भगवान को यूं ही नहीं जाना जा सकता | इन्द्रियों से व्याप्त इंसान भगवान को जानने के लिए सक्षम नहीं | जो इंद्रियातीत है, जो अविनाशी और संपूर्ण जगत का कारक है उसे शरीर (मनुष्य) के द्वारा नहीं बल्कि आत्मा के द्वारा जाना जा सकता है |
और एक शुद्ध आत्मा होने के लिए हमें 12 वर्ष की ब्रह्मचर्य और ध्यान की तपस्या (साधना) में उतरना होगा | तभी हम अपनी कुण्डलिनी पूर्ण जागृत कर सहस्त्रार (thousand petalled lotus) खोल सकेंगे | कर्मों की पूर्ण निर्जरा होते ही हम निर्विकल्प समाधि में स्थित हो जाएंगे और ब्रह्म का साक्षात्कार हो जाएगा | पूर्ण कुण्डलिनी जागरण का मतलब हुआ – हम पहले स्वामी विवेकानंद और फिर रामकृष्ण परमहंस की स्थिति में पहुंच जाएंगे |
जो साधक सोचते हैं कि मंदिर जाने, भजन कीर्तन करने और तीर्थ स्थलों की यात्रा करने से भगवान के नजदीक आ रहे हैं तो वह पूर्णतया गलत हैं | अगर उपरोक्त सही होता तो अभी तक न जाने कितने स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस आ कर चले गए होते |
अज्ञानता की कोई पराकाष्ठा नहीं | सभी मंदिर जाकर, भजन कीर्तन कर आनंदित हो रहे हैं – इस बात से पूर्णतया अनभिज्ञ कि एक और जीवन नष्ट हो रहा है बिना किसी आध्यात्मिक विकास के !
जब मैंने 5 वर्ष की आयु में भगवान से मिलने का प्रण लिया तो मुझे यह ज्ञात नहीं था – ब्रह्म कौन होते हैं – (होते हैं – यह 100% सच था – मेरे साथ घटी एक घटना के कारण) लेकिन उनसे मिलने की जिज्ञासा चरम पर थी | में उस शक्ति को देखना, मिलना चाहता था जिसने 5 वर्ष की आयु में मेरी जान बख्श दी थी |
समय गुजरने के साथ महर्षि रमण की self enquiry (नेति नेति) की पद्धति सही लगी और मैंने गहनता से शवासन की मुद्रा में नेति नेति की practice शुरू कर दी | मेरा अनुमान सही निकला और कर्मों की निर्जरा शुरू हो गई | बचपन से मंदिर जाने में कोई रुचि नहीं – धार्मिक कर्मकांडो से हमेशा दूर रहा – ध्यान हमेशा एक ही बात पर जमा रहता – कर्मों की निर्जरा !
चिंतन में उतरकर जब मैंने सनातन इतिहास को खंगाला तो पाया – पिछले 150 वर्षों में सिर्फ रामकृष्ण परमहंस और फिर महर्षि रमण को तत्वज्ञानी बनने का मौका मिला – या कहें, अपने परिश्रम से वह कैवल्यज्ञानी हो गए | मैंने अपना पूरा समय इन्हीं दोनों आध्यात्मिक दिग्गजों पर केन्द्रित कर दिया | उनकी पूरी जीवनी बचपन से आखिर तक खंगाल डाली |
इन महापुरुषों से संबंधित Market में available हर पुस्तक खरीद लाया और हंस की भांति उनमें से ज्ञान संबंधित हर बात ग्रहण कर ली | आध्यात्मिक सफर में मैंने practically महर्षि रमण की पद्धति को पूर्णतया duplicate किया | 32 वर्ष जरूर लगे लेकिन अंततः 37 वर्ष की आयु में ब्रह्म से 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार हो गया |
पूरे जीवन – क्या कभी मैं ब्रह्म से हुए साक्षात्कार का विश्लेषण आप तक पहुंचा पाऊंगा – चाहकर भी नहीं | जो समयातित है, जो मन और इन्द्रियों से परे है – उस ब्रह्म को सिर्फ और सिर्फ चिंतन (contemplation) के द्वारा अनुभव किया जा सकता है | वेदों, उपनिषदों और श्रीमद्भगवद्गीता के पठन पाठन से बिल्कुल भी नहीं |
चिंतन में कोई साधक डूबना नहीं चाहता – यही कारण है सभी 800 करोड़ लोग जन्म दर जन्म पैदा होते रहेंगे – मरते रहेंगे – जब तक मनुष्य रूप में 11 लाखवी योनि तक न पहुंच जाएं – यानि 84 लाख्वी योनि | तभी हम प्रभु के दर्शन कर सकेंगे – पहले नहीं |
12 years Tapasya | 12 साल की घोर तपस्या का सच | Vijay Kumar Atma Jnani