श्रीमद्भगवद्गीता को धरती पर स्थित ज्यादातर इंसान गलत समझते आए हैं –
1.. कुछ सोचते और कहते हैं श्रीमद्भगवद्गीता को समझने वाला साधक मोक्ष पाने का अधिकारी बन जाता है | क्या यह सच है ?
2.. कुछ कहते हैं श्रीमद्भगवद्गीता management करना सिखाती है – क्या यह भी सच है ?
3.. समाज का एक धड़ यह मानता है – श्रीमद्भगवद्गीता घर में नहीं रखनी चाहिए | घर में आपसी झगड़ों का कारण बन सकती है ?
संक्षेप में जितने मुंह उतनी बातें | चार अंधे थे | जिसके हाथ में हाथी का पैर आया – उसके लिए हाथी तने जैसा | जिसके हाथ में सूंड – तो हाथी सांप जैसा | सब अपने आप में सही लेकिन अधिकारिक तौर पर पूर्णतया गलत | कारण – हाथी को कोई भी पूर्ण रूप में न महसूस कर पा रहा था न देख | यही हाल श्रीमद्भगवद्गीता का है – सम्पूर्ण रूप में श्रीमद्भगवद्गीता के तथ्य को समझ पाने में कोई भी सक्षम समर्थ नहीं | जो जाना – सो मान लिया – सही हो या गलत !
ब्रह्म ने श्रीमद्भगवद्गीता की रचना इसलिए की कि मनुष्य भवसागर से पार लग सके | यानी 84 लाख में 11 लाख मनुष्य योनियों में तत्वज्ञान प्राप्त कर जन्म और मृत्यु के चक्र से हमेशा के लिए बाहर आकर – शुद्ध हुई आत्मा के रूप में पूरे ब्रह्माण्ड में भ्रमण कर सके |
श्रीमद्भगवद्गीता हर विषय को किस तरह से deal करती है उसके दो उदहारण पेश हैं –
1.. दो घने दोस्त किसी विषय को लेकर एक गगनचुंबी इमारत के नीचे खड़े लड़ रहे थे | ऊपर से एक की पत्नी सब देख रही थी और कुछ इशारा कर रही थी | तो वह दोस्त अपनी पत्नी से मिलने 24 वी मंजिल पर लिफ्ट से गया | ऊपर जाकर उसने अपने मित्र को देखा जो चींटी की भांति दिख रहा था | पत्नी ने पूछा – लड़ क्यों रहे थे | मुंह से बोल न निकले | Wallet जो छुट गया था लेकर नीचे आ गया |
नीचे आना था कि झगड़ा खत्म – दोस्त हैरान परेशान | जो कुछ समय पहले इतना झगड रहा था अब इतना शांत और सौम्य | कारण था अब उस दोस्त की व्यापक सोच – इतने बड़े संसार में क्या मैं उस दोस्त से (किसी गैर से भी नहीं) लड़ रहा था जिसका अस्तित्व अभी कुछ समय पहले चींटी के बराबर था – जीवन की क्षणभंगुरता का अहसास हो गया था – सो झगड़ा खत्म |
2.. दो व्यक्ति सड़क किनारे लड़ रहे थे – दोनों के हाथ में डंडी थी | दोनों कह रहे थे उसकी डंडी बड़ी ! कुछ समय पश्चात एक भिक्षुक उधर से गुजरा | झगड़ा देखा – पास के वृक्ष से लंबी डंडी तोड़ी और उन दोनों लड़ते लोगों की डंडी के बगल में रख चला गया – मुंह से एक शब्द भी नहीं बोला | झगड़ा खत्म – न तेरी बड़ी न मेरी |
यहां पर भी जैसे ही दोनों व्यक्तियों को अहसास हुआ अपने छोटे होने, अपनी छोटी संकुचित सोच का – झगड़ा खत्म हो गया |
उपरोक्त दोनों झगड़ों को खत्म किया श्रीमद्भगवद्गीता के अंदर निहित ज्ञान ने | श्रीमद्भगवद्गीता साधक की सोच को इतना विराट कर देती है कि दूसरे को क्षमा करने के अतिरिक्त कोई और विकल्प नजर नहीं आता |
श्रीमद्भगवद्गीता के अंदर निहित ज्ञान साधक की सोच को इतना विराट स्वरूप प्रदान करता है कि वह एक अच्छा मैनेजर ही नहीं, बल्कि स्थिति के विराट स्वरूप को देख पाता है और अंततः तत्वज्ञानी बन मोक्ष पाता है | वाकई में परेशानी कैसी भी हो – श्रीमद्भगवद्गीता हमें समस्या के हर प्रारूप से अवगत करा उसका समाधान देती है | यह तभी संभव हो पाता है जब अध्यात्म के रास्ते पर चलते हुए हम शनै शनै अपनी मैं (ego) को कम करते की क्षमता रखते हों |
5 वर्ष की आयु से मेरी सोच इतनी विराट रही कि पूरा ब्रह्माण्ड समा जाए – इसी कारण 32 वर्ष तपस्या पश्चात ब्रह्म से 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार संभव हुआ |
Samudra Manthan ki gatha | समुद्र मंथन की गाथा | Vijay Kumar Atma Jnani