अगर हम समुद्र मंथन की गाथा का अवलोकन करें तो पाएंगे कि आध्यात्मिक साधक जब अपने विचारों पर पूर्ण control स्थापित कर जब निर्विकल्प समाधि की अवस्था में पहुंचता है तो वह शिव कहलाता है | शिव यानि नीलकंठी, जिसने विष अपने गले में धारण किया हुआ है और गले में पड़े सर्प यानि जिसकी कुण्डलिनी पूरी जागृत हो गई है | यह शिव यानी तत्वज्ञानी जब शरीर का त्याग करेगा तो विष्णु बन जाएगा |
विष्णु शेषनाग की शैय्या पर लेटे हैं और लक्ष्मी जी चरणों में बैठी हैं | शेषनाग इस बात को represent करते हैं कि कुण्डलिनी पूर्ण जागृत है | लक्ष्मी जी चरणों में represent करती हैं कि मायानगरी, मोह इत्यादि पर पूर्ण कंट्रोल स्थापित कर लिया है | यानि कर्मो की पूर्ण निर्जरा हो गई है |
भौतिक जगत में जब रामकृष्ण परमहंस या महर्षि रमण तत्वज्ञानी हो गए तो शिव बन गए और जब उन्होंने शरीर त्यागा तो विष्णु हो गए | रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु गले में रोके हुए विष के कारण ही हुई थी | दोनों शिव और विष्णु उपाधियां हैं जो एक तत्वज्ञानी की स्थिति को समझाती हैं | यह बात उपनिषदों में भलीभांति प्रतिपादित है |
Samudra Manthan ki gatha | समुद्र मंथन की गाथा | Vijay Kumar Atma Jnani