तीर्थयात्रा कर लें चाहे गंगा या महाकुंभ में स्नान – अगर मन का मैल नहीं गया तब क्या ?


मानव जीवन में यह बात सोलह आने सच है कि अंदरूनी मन की सफाई अंदरूनी सफर से ही होगी यानि हमें अध्यात्म में सकारात्मक सोच के साथ उतरना होगा | बैठ कर शांत भाव से सोच कर देखें – सफाई आत्मा की होनी है जो क्लेशों से घिरी हुई है न कि बाहरी शरीर की |

 

गंगाजी में नहाने से, कुंभ या महाकुंभ में स्नान करने से क्या आत्मा की मलिनता खत्म होती है – अगर साफ होगा भी तो सिर्फ शरीर, अन्य कुछ भी नहीं | अपने को भ्रम में रख कर क्या होगा, दिल से सच्चे अन्वेक्षी बनें और सत्य का सामना करें |

 

मन की मलिनता सिर्फ और सिर्फ नकारात्मक विचारों की निवृत्ति से दूर होती है | अपने अंदर आते, अंदर से उमड़ते नकारात्मक विचारों के सैलाब को रोकना होगा – तभी हमारा मन निर्मल होगा और हम खुद को ब्रह्म के नजदीक पाएंगे |

 

यह सब मैंने अपने शरीर पर झेला है – अपने अनुभव से कह रहा हूं | अगर हमारे नकारात्मक विचार कम होते चले जाएं तो हम पाएंगे कि – हमें गुस्सा कम आता है, हमारे अंदर हीन भावना नहीं पनपती, हमारी मैं भी कम होती है – हमें पूरा संसार आनंद से भरपूर नजर आता है |

 

धार्मिक कर्मकांडो से मन की मलिनता कभी भी कम नहीं होती, चाहे हम कितने भी पूजा पाठ, भजन कीर्तन कर लें | इस तथ्य को जानते सभी हैं लेकिन मानना नहीं चाहते – इस डर से कहीं जग में रुसवाई न हो जाए | यही कारण है आध्यात्मिक खोजी ब्रह्म के अलावा किसी और की चिंता नहीं करता |

 

महावीर, बुद्ध, गुरुनानक, संत एकनाथ, ज्ञानेश्वर इत्यादि कभी लोक-लाज से नहीं डरे | सच्चे साधक को डर सिर्फ ब्रह्म का रहता है – कहीं जाने अनजाने में कोई गलती न हो जाए |

 

अध्यात्म और भेड़ चाल | Vijay Kumar Atma Jnani

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