भगवान भक्त को दुख क्यों देते है ?


भक्त कौन जो मंदिर जाकर पूजा इत्यादि करता है | या जो भजन कीर्तन में लीन है | या वो जो आश्रमों में जाकर अपने गुरु का सानिध्य करता है | या वो जो साल में 2~3 बार वैष्णो देवी जाकर मत्था टेकता है | या वो जो घर में मंदिर बनाकर सुबह शाम पूजा में बैठता है |

 

अध्यात्म में उपरोक्त किसी भी भक्त के लिए जगह नहीं | सबसे उच्च योनि में स्थापित होकर भी हम इतनी साधारण सी बात समझना नहीं चाहते कि ब्रह्म तो अंश रूप में हृदय में विराजमान हैं आत्मा के रूप में | किसी भी भक्त को ब्राह्म जगत प्रभु की चाकरी इत्यादि के लिए तर्क संगत लग सकता है लेकिन है तो नहीं |

 

प्रभु तो अंदर विराजित हैं | ब्रह्म तक पहुंचने के लिए हमें ध्यान करना होगा – सिर्फ मंदिर इत्यादि जाने से कुछ नहीं होगा | मंदिर/ तीर्थ इत्यादि जाने से कितने भक्तों को ज्ञान प्राप्त हुआ | मंदिर/ तीर्थ जाकर भगवान को तो धोखा दे ही रहे हैं, खुद को भी | जीवन में सुख दुख हमारे कर्मों पर आधारित हैं | सत्य की राह पर चलेंगे तो ब्रह्म अग्नि परीक्षाएं तो लेंगे ही |

 

सच्चा भक्त कभी किसी कठिनाई से नहीं घबराता | उसे मालूम है ब्रह्म हमेशा उसके साथ हैं | धार्मिक प्रपंचों में फंसे रहने से आध्यात्मिक प्रगति नहीं होगी | धार्मिक रीतिरिवाजों में फंसा इंसान भक्त कैसे हो सकता है | भक्ति तो पूर्ण समर्पण मांगती है – जो आज के समय में संभव नहीं, इसलिए सही वक़्त पर रामकृष्ण परमहंस भक्तियोग छोड़ ज्ञानयोग में उतर गए |

 

What is Bhakti | भक्ति क्या है | Vijay Kumar Atma Jnani

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