स्वामी विवेकानंद ध्यान कैसे करते थे ?


स्वामी विवेकानंद ध्यान में चिंतन मनन के माध्यम से उतरते थे | उनकी ध्यान में रुचि बचपन से ही थी | धार्मिक कर्मकांडो से वह हमेशा दूर रहते थे – इसलिए ध्यान करना उनके लिए आसान था | सही चिंतन वही कर सकता है जो धार्मिक क्रियाकलापों जैसे पूजा, भजन कीर्तन इत्यादि से हमेशा दूर रहे | धार्मिक प्रपंचों में समय गवाना उनकी प्रवत्ति नहीं थी | वे हमेशा से शुद्ध अध्यात्म के पीछे थे |

 

ध्यान में स्वामी विवेकानंद हमेशा गूढ़ प्रश्नों के उत्तर ढूंढा करते थे | सही उत्तर न मिलने की अवस्था में वह किसी गुरु की तलाश में रहते | जब उन्हें भगवान के होने या न होने में शंका थी तो उन्होंने बड़े परिश्रम के बाद श्री रामकृष्ण परमहंस को ढूंढ़ ही लिया | एक बार स्वामी विवेकानंद जिस चीज के पीछे पड़ जाते थे – उसे हांसिल करके ही दम लेते थे |

 

भगवान के होने का अहसास महसूस करना था तो श्री रामकृष्ण परमहंस को ढूंढ़ ही लिया | स्वामी विवेकानंद एक आदर्श साधक की भांति अखंड ब्रह्मचर्य का पालन करते थे – ऐसा करने से वह अंदर एकत्रित होते अमृत को स्वेच्छा अनुसार इस्तेमाल कर सकते थे | वह अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा को हमेशा कुण्डलिनी जागरण की ओर प्रेषित करते रहते थे |

 

ऐसा करने से स्वामी विवेकानंद का बंद पड़ा मस्तिष्क धीरे धीरे खुलने लगा और स्वामी विवेकानंद की स्मरण शक्ति अभूतपूर्व हो गई | इसी कारण वह 400 पन्नों की पुस्तक एक बार पढ़ कर आत्मसात कर लेते थे | ब्रह्मचर्य का स्मरण शक्ति को बढ़ाने में बहुत महत्वपूर्ण योगदान है | स्वामी विवेकानंद की अद्भुत अभूतपूर्व सफलता का कारण उनका ब्रह्मचारी बने रहना था |

 

जब हम अपने मूलाधार में एकत्रित अमृत को अपने लक्ष्य की ओर direct कर देंगे तो सफल तो होंगे ही | इतने कम समय में इतनी आध्यात्मिक उन्नति सिर्फ आदि शंकराचार्य ने की थी | वह भी बाल ब्रह्मचारी थे |

 

शास्त्रानुसार ध्यान करने की विधि एक ही है | अपने अंदर उमड़ते प्रश्नों का उत्तर ढूंढ़ उन्हें जड़ से खत्म कर देना | यह सिर्फ चिंतन और सत्संग के माध्यम से संभव है | स्वामी विवेकानंद घंटों चिंतन में डूबकर प्रश्नों के उत्तर ढूंढा करते थे | उन्हें किसी ब्राह्म मदद की जरूरत नहीं थी | स्वामीजी ने छोटी उम्र में ही जान लिया था कि हृदय से आती आवाज़ ब्रह्म, आत्मा के अलावा और किसी की हो ही नहीं सकती | बस इसी आवाज़ का सहारा लेकर स्वामी विवेकानंद चिंतन करते थे |

 

स्वामी विवेकानंद की ध्यान प्रक्रिया हमेशा चलती रहती थी | वह ध्यान मुद्रा में बैठकर ध्यान करते थे लेकिन उनकी ध्यान की प्रक्रिया कभी रुकती नहीं थी | सोते जागते 24 घंटे अंदर चिंतन चलता रहता था | स्वामी विवेकानंद भलीभांति समझते थे जीवन एक ही है | जो कुछ हांसिल करना है  – इसी जीवन में करना है| लेकिन पाश्चात्य जगत से रूष्ट हुए तो इतना कि संसार छोड़ गए |

 

Dhyan kaise karein | ध्यान करने की सही विधि | Vijay Kumar Atma Jnani

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