जब भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया तब समय रुक क्यों गया था ?


मानसिक तरंगे लाइट की स्पीड (1,86,000 मील प्रति सेकंड) से ज्यादा तीव्र गति से चलती हैं | हम समय को किस तराजू में तौलते हैं – light की स्पीड से | जब साधक अध्यात्म में साधना में उतरता है तो वह मानसिक तरंगों के सबसे ऊंचे आयाम पर स्थित होता है – एक ऐसा आयाम जहां समय वाकई रुक सा जाता है | एक तत्वज्ञानी सालों का काम कुछ घंटों में निबटा सकता है – कैसे ?

 

जिस frequency (मानसिक तरंगों) पर श्रीकृष्ण operate करते थे वह शून्य की स्थिति थी यानी समय में कोई हलचल नहीं | शून्य की स्थिति यानि समय रुक गया है | हर आध्यात्मिक साधक जो तत्वज्ञानी हो जाता है – उसके लिए समय रुक सा जाता है | ऐसा रामकृष्ण परमहंस और महर्षि रमण के साथ काम करने वाले लोगों ने जरूर महसूस किया होगा |

 

1993 में ब्रह्म साक्षात्कार के बाद मैं 2 वर्ष का कार्य 4 घंटों में निबटा लिया करता था – नतीजा, हमेशा समय से आगे रहता | कभी कभी कुछ विभागों के उच्च पदाधिकारियों से बहस हो जाती जब मैं समय से पहले कुछ कागजात मांग लेता – कुछ कहते, जो कागजात उत्पन्न ही 3 महीने बाद होंगे, आप कागजात आज क्यों मांग रहे हैं ? कार्य जल्दी होते देख मैं खुद अचंभित रहता था – लेकिन अंदर से खुश |

 

एक बार मैंने जमकर लगभग 4 घंटे काम किया और जब घड़ी देखी तो 5 मिनट गुजरे थे | समय वाकई रुक जाता है – भुक्तभोगी हूं | अध्यात्म की राह पर हर साधक के जीवन में गहन ध्यान की अवस्था में कुछ पल ऐसे आएंगे जब शून्य की स्थिति (कुछ क्षण के लिए) आएगी, तब आप देखेंगे कि समय जैसे ठहर सा गया है | हाथ कंगन को आरसी क्या !

 

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