आत्माओं की दुनिया में एक योनि से दूसरी योनि में स्थांतरण को भूलोक में मृत्यु कहा गया है | हम एक कपड़ा पहनते हैं और जर्जर हो जाने पर उसे त्याग नया वस्त्र धारण करते हैं – बस इसी को मृत्यु कहा जाता है | जब शरीर जर्जर हो जाए तो आत्मा उसे त्याग नया शरीर धारण करती है – और शरीर मृत्यु को प्राप्त होता है (असल में जीव मृत्यु को प्राप्त होता है जब उसके अंदर निहित चेतना उसे छोड़ देती है) |
आत्माओं की दुनिया में मौत मात्र एक उपक्रम है – एक क्रिया | शरीर छिन जाने पर जीव मृत्यु के समय रोता है – जब उसे एहसास होता है कि जीवन भर जो कमाया सब नष्ट हो गया लेकिन आत्माओं की जीवन यात्रा में मात्र अगला कदम | भावनाएं सिर्फ और सिर्फ भौतिक जिंदगी तक सीमित हैं – उनका आत्माओं की जिंदगी में कोई महत्व नहीं |
अपने पूरे जीवन में आत्माएं 84 लाख योनियों के भव से गुजरेगी – यानी शरीर रूप की 83.99999 बार मौत | जीवन में प्रगति करने, आगे बढ़ने का मृत्यु एक मात्र सहारा है | अगर शरीर की मृत्यु न हो तो जीवन आगे कैसे बढ़ेगा ? तो मृत्यु को ध्यान में रख मनुष्यों को कोशिश करनी चाहिए कि इसी जीवन में पार लग जाएं – यानी पहले स्वामी विवेकानंद और फिर रामकृष्ण परमहंस बन मोक्ष द्वार तक पहुंच जाएं |
जब मैं छोटा था – 5 वर्ष की आयु तो मन में विचार आया – जीवन किसलिए | दादा और दादीजी से बात कर यह एहसास हो गया – जो करना है बस इसी जीवन में | आत्मा की तो और भी योनियां होंगी लेकिन मेरे लिए एक ही जीवन है | बस इसी एहसास के साथ ब्रह्म की खोज शुरू हो गई | 32 वर्ष की आध्यात्मिक तपस्या और 37 की आयु में ब्रह्म से 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार |
आखिरकार मौत पर हमेशा के लिए विजय पा ही ली | जब आत्मा पूर्णतया शुद्ध हो गई और नया शरीर नहीं लेगी तो मृत्यु किसकी ?
12 years Tapasya | 12 साल की घोर तपस्या का सच | Vijay Kumar Atma Jnani