अंतरात्मा तो सभी जीवों में होती है – चाहे वह अमीबा हो, कीट पतंगों की योनि, पेड़ पौधों की योनि या पशु पक्षियों की योनि | बिना चेतन (आत्मा के) कोई जीव जिंदा रह ही नहीं सकता | हमारी आत्मा ने यह शरीर धारण किया है तभी तो हमारा अस्तित्व है अन्यथा बिना चेतन तत्व हम सिर्फ पांच तत्वों से बने एक आकार हैं | हमारी अंतरात्मा ही जगत का सही स्वरूप है |
हर जीव के अंदर निहित आत्मा (जिसे हम अंतरात्मा कहते हैं) एक के बाद एक शरीर धारण करती रहती है – जब तक वह अपने original स्वरूप को नहीं पा जाती | 84 लाख योनियों का यह सफर अबाध रूप से बिना अड़चन चलता रहता है | अंतरात्मा का ब्रह्मांडीय सफर तब खत्म होता है जब मनुष्य महावीर, बुद्ध, रामकृष्ण परमहंस या महर्षि रमण न बन जाए |
अंतरात्मा अपना पहला सफर एक इन्द्रिय जीव (अमीबा) से शुरू करती है और अंत में आती है मनुष्य योनि | इसलिए अंतरात्मा को मनुष्य रूप से बेहद उम्मीद रहती है कि वह आध्यात्मिक सफर पर जाए और तत्वज्ञानी बन जल्दी से जल्दी मोक्ष प्राप्त करे | अध्यात्म में उतरना एक तरह से मानव रूप की मजबूरी है क्योंकि शरीर अंतरात्मा ने धारण किया है |
इंसान जितना जल्दी जाग जाए तभी सवेरा |
पशु पक्षियों की योनि तक भोग योनि है – उन्हें अपने अंदर निहित दिव्य चेतना का कोई आभास नहीं | कीट पतंगों, पेड़ पौधों और पशु पक्षियों की योनि तक जीवन गुजरता है – मजबूरन काटना पड़ता है – और कोई सहारा नहीं | यह तो मनुष्य योनि में आते ही हमें will power और विवेक के अस्तित्व का अहसास होता है | और इसी will power और विवेक के सहारे मनुष्य अंततः मोक्षगामी हो जाता है |
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