आध्यात्मिकता और सकारात्मक सोच (विचार) – कितना जरूरी ?


अध्यात्म की राह पर चलने के लिए सकारात्मक विचारों का कितना महत्व है – 100% | हम अगर हर क्षण positivity में व्याप्त रहने नहीं रह सकते तो अध्यात्म हमारा क्षेत्र नहीं | कोई कहे मैं 23 घंटे सकारात्मक विचारों में डूबा रहता हूं लेकिन एक घंटे तो नकारात्मक विचार हाबी हो ही जाते हैं तो ध्यान रहे – 23 घंटे में संकलित पुण्य उस एक घंटे की नकारात्मक सोच के कारण zero हो सकते हैं और negative में भी जा सकते हैं | यह मुख्य कारण है आध्यात्मिक उन्नति न होने का !

 

आध्यात्मिक साधक को हर समय सकारात्मक विचारों में डूबे रहने की प्रवत्ति विकसित करनी होगी – और कोई चारा नहीं | चाहे हम कितना भी नकारात्मक विचारों वाले लोगों से घिरे हों – हमारी भावना सकारात्मक होनी चाहिए | दूसरे क्या सोच रहे या कर रहे हैं – हमारा इन सब बातों से क्या सरोकार !

 

याद है उस साधु की कहानी जो बाढ़ आयी नदी में हाथ डालकर बार बार एक खतरनाक कीड़े को बाहर निकाल रहा था लेकिन काटने के कारण, हाथ पलट जाता और वह कीड़ा फिर नदी में गिर जाता | पास खड़े एक व्यक्ति ने जब इसका कारण पूछा तो स्वामीजी बोले – काटना इस कीड़े का स्वभाव है और बचाना मेरा | मैं तो बस अपनी प्रवत्ति, आदत पर कायम हूं – दूसरा क्या कर रहा है मुझे उससे सरोकार नहीं | बस यही बात हर साधक को ध्यान रखनी है – खुद के कर्मों पर ध्यान दें न कि औरों पर |

 

हमें हमेशा ध्यान रखना होगा – एक ही जीवन है, वह भी 70~80 वर्ष का | अगर हम इसी जन्म में प्रभु को पाना चाहते हैं, उसका साक्षात्कार करना चाहते हैं तो हर समय सकारात्मक विचारों का अवलोकन – हमारे लिए आवश्यक ही नहीं बेहद जरूरी भी है | कोई हमें मारना चाहे तो भी हम सत्य के मार्ग को त्याग नहीं सकते | हमें सत्य के मार्ग पर चलते हुए समस्या का सामना करना होगा – समाधान ढूंढना होगा |

 

कौरवों ने पांडवों को मारने की/ प्रताड़ित करने की बेहद कोशिश की लेकिन नाकाम रहे – क्यों ? क्योंकि ब्रह्मस्वरूप कृष्ण हमेशा पांडवों के साथ थे | इसी प्रकार हर सच्चे साधक का साथ ब्रह्म हमेशा देते हैं | हृदय से आती आवाज़ इसी बात का संकेत है – सत्य मार्ग पर चलते हुए हमें बस इस आवाज़ को सुनना है | जीवन में कैसी भी कठिनाई आए – हमें बस हृदय से आती ब्रह्म की आवाज़ सुननी है और उस पर अमल करना है | कठिन है बेहद कठिन – असंभव नहीं |

 

मुझे अपने आध्यात्मिक जीवन में अनगिनत कठिनाइयां आयी लेकिन मैंने सत्य का मार्ग नहीं छोड़ा | इस कारण हृदय से आती ब्रह्म/ आत्मा/ कृष्ण की आवाज़ को में हमेशा भलीभांति सुन सकता था | मेरे अंदर उमड़ते हजारों प्रश्नों के उत्तर मुझे अंततः ब्रह्म से मिलते रहे और एक दिन मैं निर्विकल्प समाधि में स्थित हो गया – हमेशा के लिए | 37 वर्ष की आयु में ब्रह्म से 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार भी हो गया और आखिरकार जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंच ही गया – 84 लाखवी योनि |

 

आध्यात्मिक सफर में कठिनाई तो बहुत है | इसी कारण ब्रह्म ने 84 लाख योनियों का फेर बनाया है – जिसे पूरा करने में शास्त्रानुसार लगभग 1 करोड़ वर्ष की अवधि चाहिए | और अगर हम यह सब 70~80 वर्ष के एक ही जीवन में पूरा करना चाहते हैं तो सकारात्मक विचारों के अधीन होना पड़ेगा – हमेशा के लिए | 5 वर्ष की आयु में जब मैं ब्रह्म की खोज में चला – मुझे यह थोड़े ही मालूम था सभी कुछ इसी जीवन में प्राप्त हो जायेगा ! कोशिश जारी रही – देना न देना ब्रह्म के हाथों में था |

 

Listen to Inner Voice coming from within our Heart | हृदय से आती आवाज को सुनना सीखें | Vijay Kumar

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