शांति तो इतनी मिलेगी की खुशी से फूले नहीं समाओगे, लेकिन उस अशांति का क्या जो जीवन में एक मिनट भी चैन से बैठने नहीं देगी (आपकी पत्नी) |
गृहस्थ में रहकर अध्यात्म की साधना करना एक relative term है | हमें balance बनाकर चलना होता है भौतिक और आध्यात्मिक life में | मुश्किल है असंभव नहीं | अगर bachelor हैं (स्वामी विवेकानंद या महर्षि रमण की तरह) तो ज्यादा मुश्किल नहीं |
अध्यात्म में चिर शांति का क्या कारण है | जो भी चीज भगवान या आत्मा से जुड़ी है, वह ब्राह्म क्रिया नहीं | अध्यात्म का सफर एक आंतरिक journey है जहां शांति के अलावा और कुछ भी नहीं | सब तर्क और चिंतन पर आधारित है |
गुत्थमगुत्था तो विचारों की है जिसे हम समुद्र मंथन के नाम से जानते हैं | आप घंटो बैठे रहें, आध्यात्मिक चिंतन करते रहें, बाहर किसी को खबर नहीं होगी | जैसे जैसे हम अपने विचारों का उत्थान करेंगे और ब्रह्म के नजदीक आएंगे – शांति (absolute bliss) महसूस करेंगे | ऐसा क्यों ?
चिंतन करते हुए जब कर्मों की निर्जरा होगी तो मस्तिष्क में आते विचारों में कमी आती जाएगी | इसी कमी के कारण हम शांति (आनंद) महसूस करेंगे | निर्विकल्प समाधि की अवस्था में पहुंचते ही हम अपूर्व शांति (चिर शांति, आनंद ही आनंद) महसूस करेंगे |
ब्रह्म आनंदमय हैं और तत्वज्ञानी होते ही हम भी आनंदमय हो जाएंगे |
Samudra Manthan ki gatha | समुद्र मंथन की गाथा | Vijay Kumar Atma Jnani