आध्यात्मिक विकास/ सफर मूलतः हृदय में स्थित आत्मा के लिए होता है | जब हम अध्यात्म में साधना में उतरेंगे और आध्यात्मिक उन्नति होगी तो हमारा बंद पड़ा मस्तिष्क का हिस्सा खुलने लगेगा | हम ब्रह्म के नजदीक जाने लगेंगे/ हमारी आत्मा शुद्धि प्राप्त करने लगेगी | मानसिक विकास से खुद को अत्यंत आनंद की अनुभूति होती है |
अध्यात्म मूलतः स्वयं के लिए है | अगर हम परिवार में रहते हुए अध्यात्म में आगे बढ़ेंगे तो इससे परिवार का लेशमात्र भी फायदा नहीं – नुकसान ही नुकसान | पूरा भारतीय इतिहास उठाकर देख लीजिए – महावीर से लेकर बुद्ध, फिर रामकृष्ण परमहंस और फिर महर्षि रमण – सब के घर में मातम छा गया | जितना बड़ा परिवार – उतनी बड़ी समस्या |
इसी बात को ध्यान में रखकर ब्रह्म ने मनुष्य रूप में आध्यात्मिक सफर को पूरा करने के लिए 11 लाख योनियों का लंबा सफर दिया है | भूलकर भी बुद्ध वाली गलती तो करनी ही नहीं है – सोती हुई पत्नी और बच्चे के पर छूकर राजमहल से रात में निकल लिए | बिना घरवालों की इजाज़त लिए – अध्यात्म में उतरने की भारतीय दर्शन इजाज़त नहीं देता |
लाखों जो हरिद्वार, ऋषिकेश, काशी, वृंदावन, उज्जैन और नासिक इत्यादि में पड़े हैं – आप क्या समझते हैं घर से इजाज़त लेकर आए हैं, नहीं – लगभग सभी भरेपूरे परिवार को छोड़कर भागे हुए हैं | ऐसे क्या अध्यात्म में उतरा जाता है – अपनों को बीच मझधार में छोड़ बस चल दिए | इनका गुनाह बड़ा है – माफी के लायक नहीं |
तभी तो इन धार्मिक स्थलों पर डोलते फिरते रहते हैं – अगले पल की भी खबर नहीं क्या हो जाए ? 10,800 वर्षों के भारतीय इतिहास में कभी सुना इन जगहों से किसी को लेशमात्र भी आध्यात्मिक ज्ञान मिला हो ? आध्यात्मिक सफर में हमेशा सोच समझ कर उतरें |
Right Age to start a Spiritual Journey | आध्यात्मिक ज्ञान लेने की सही उम्र | Vijay Kumar Atma Jnani