आध्यात्मिक हुआ नहीं जाता, सब कुछ पीछे से आता है, पिछले जन्म से | अगर इस जन्म में हम अध्यात्म की राह पकड़ेंगे भी तो किसी के कहने पर नहीं | कोई कितनी भी कोशिश कर ले किसी अन्य को अध्यात्म की राह पर मोड़ ही नहीं सकता, शायद भगवान भी नहीं |
अगर हम पीछे से आध्यात्मिक नहीं और एक नई शुरुआत करना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले सत्य के मार्ग पर चलना होगा, ऐसा करने से हमारी भगवान में आस्था पूर्ण 100% हो जाएगी | फिर हम महर्षि रमण के रास्ते पर चलेंगे – शवासन की मुद्रा में लेटकर यह चिंतन करेंगे – में पूजा क्यों करता हूं, मंदिर क्यों जाता हूं |
जब चिंतन आगे बढ़ेगा तो अहसास होगा कि मंदिर जाना तो व्यर्थ है क्योंकि हमें तो हृदय में स्थित भगवान तक पहुंचना है | तो इतने सालों से जो मंदिर जाते रहे – सब व्यर्थ ! और मंदिर में पुजारी कहता है दान दक्षिणा नहीं करोगे तो स्वर्ग में जगह नहीं मिलेगी | अध्यात्म कहता है स्वर्ग में temperature करोड़ों degrees Celsius होता है और सिर्फ आत्माएं जाती हैं, यह भी झूठ ?
शवासन की मुद्रा में पहला प्रश्न यह नहीं होगा – मैं कौन हूं, कहां से आया हूं, कहां जाना है – यह स्टेज बाद में आएगी |
अध्यात्म में मन के अंदर उमड़ती सारी शंकाएं जड़ से खत्म करनी होती हैं | जैसे जैसे प्रश्नों का सिलसिला आगे बढ़ेगा हमें उत्तर खुद विवेक से अंदर से ही ढूंढने होंगे | कोई गुरु काम नहीं आएगा | काम आएंगी तो ऐसी आध्यात्मिक पुस्तकें और टीकाएं (जिनके references मेरे videos में मिल जाएंगे) जो महावीर, आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस और महर्षि रमण से ताल्लुक रखती हों |
सभी तरह की टीकाएं गीताप्रेस, गोरखपुर के पूरे देशभर के डिपो/ बुकस्टॉल में उपलब्ध हैं |
जब हम यह सोचेंगे की हरिद्वार/ ऋषिकेश में गंगाजी में डुबकी लगाने से आध्यात्मिक प्रगति नहीं होती क्योंकि अध्यात्म में आगे बढ़ने के लिए सिर्फ और सिर्फ कर्मों की निर्जरा करनी होती है तो हम धार्मिक अनुष्ठानों से धीरे धीरे दूर होते जाएंगे |
ऐसा करते करते हमें स्वतः ही आगे का रास्ता मिलता चला जाएगा और हम एक सक्षम साधक हो जाएंगे | ध्यान रहे हमें एक दिन रामकृष्ण परमहंस या महर्षि रमण के level पर पहुंचना है और नारी हैं तो गार्गी या Maitreyi के level पर |
Is it necessary to go to temple to Realize God | भगवान की प्राप्ति के लिए क्या मंदिर जाना आवश्यक है