केवल आध्यात्मिक जैसी कोई चीज ब्रह्माण्ड में exist नहीं करती | अगर करती तो आत्मा को शरीर धारण करने की जरूरत ही क्यों होती ? एक आत्मा को अपने शुद्ध रूप में वापस आने के लिए कर्म करना ही होता है | और कर्म भौतिक शरीर ही करता है | आत्मा स्वयं तो दृष्टा की भांति रहती है |
जिस दिन भौतिक शरीर की आवश्यकता नहीं रहती – यानि साधक कर्मों की निर्जरा कर एक तत्वज्ञानी बन गया – एक शुद्ध आत्मा हो गया | शरीर की आवश्यकता तभी तक है जब तक कर्म बाकी हैं | एक शुद्ध आत्मा का शरीर धारण करने में फिर प्रयोजन नहीं रहता |
What Karma really means? कर्म का वास्तव में क्या अर्थ है? Vijay Kumar Atma Jnani