कलियुग में हो सकता है अन्यथा नहीं | आजकल हर इंसान धार्मिक अनुष्ठानों में लगे रहने के बावजूद अगर पूछो तो कहेगा, अध्यात्म में लगा हूं | अध्यात्म का शाब्दिक अर्थ भी शायद समझा न पाए लेकिन सभी की तरह होड़ में पीछे क्यों रहे ?
मुझे अपने 63 वर्ष के आध्यात्मिक जीवन में पूरी दुनियां में अभी तक 5 लोग भी ऐसे नहीं मिले जो अध्यात्म शब्द को सही से समझे हों | सफर तो दूर, शाब्दिक अर्थ समझने में नाकामयाब – क्या ऐसे लोगो से कुछ भी उम्मीद की जा सकती है ?
आज आप 1000 नोबल पुरस्कार स्वामी विवेकानंद के चरणों में रख दीजिए – मुड़ कर चल देगा देखे बिना | क्या तौहीन की थी स्वामी विवेकानंद की विश्व धर्म संसद में 1893 के Chicago सम्मेलन में | बेचारा स्वामी – 9 वर्ष के भीतर चल बसा |
सोचा था अध्यात्म के बदले झोली हीरे जवाहरात से भर देंगे – तालियों की गड़गड़ाहट के सिवा झोली से कुछ न निकला | जो सच्चा साधक होगा वह सत्य मार्ग पर चलने वाला होगा – झूठ से कोसों दूर | सत्यवादी कभी स्वार्थी और चापलूस नहीं हो सकता |
Power of Absolute Truth | अध्यात्म में सत्य का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani