भगवान के लिए पूजा इत्यादि में लगे रहना धर्म का पर्यायवाची बन गया है | जो धार्मिक है उसे (religious) कर्मकांडी कहने लगे हैं | लेकिन धार्मिक लोगों का ब्रह्म से दूर दूर का नाता नहीं – क्योंकि आज के समय में पूजापाठ, कर्मकांडो में लगे लोग भगवान के जरा भी नजदीक नहीं | ब्रह्म ब्राह्म वस्तुओं में नहीं – न तो मंदिरों में, न ही यज्ञ इत्यादि में |
ब्रह्म तो सिर्फ और सिर्फ अध्यात्म के द्वारा जाने जा सकते हैं | अध्यात्म यानि ऐसा अध्ययन जो आत्मा के नजदीक ले जाए, जिस ज्ञानमार्ग पर चलकर साधक ब्रह्मलीन हो जाए – वहीं सच्ची आध्यात्मिकता है क्योंकि आत्मा परमात्मा (ब्रह्म) का ही अंश है | आध्यात्मिक सफर अंदर की ओर, हृदय में स्थित, आत्मा, परमात्मा की ओर जाता है |
अध्यात्म ध्यान/ चिंतन का मार्ग है जिस में 12 वर्ष की अखंड ध्यान और ब्रह्मचर्य की तपस्या में उतरना होता है | इस 12 साल के दौरान 1 भी break/ विघ्न permitted नहीं है | वहीं ध्यान/ चिंतन जो महावीर ने 12 वर्ष टीले के ऊपर खड़े होकर किया और बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर | तभी कर्मों की पूर्ण निर्जरा संभव है |
धर्म तो जन्म से हर जीव के साथ विद्यमान है | धर्म की परिभाषा जो साक्षात्कार के बाद ब्रह्म ने मुझे डिक्टेट करी थी – your right to do what is just and right and not what was destined | कहने का तात्पर्य है कि यह धर्म ही है जो हमें अंदर से अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए एक स्वच्छंद जिंदगी जीने के लिए प्रेरित करता है |
हर आध्यात्मिक साधक के साथ धर्म तो हमेशा से अंदर से विद्यमान है | धर्म से प्रेरित होकर ही साधक एक दिन अध्यात्म कि राह पकड़ महर्षि रमण बनने की सोचता है और बन भी जाता है |
What is the real meaning of spirituality? अध्यात्म का वास्तविक अर्थ क्या है ? Vijay Kumar Atma Jnani