क्या सब कुछ छोड़ पहाड़ पर जाने से आध्यात्म जीवन में उतर आता है ?


सब कुछ छोड़ कर हजारों नहीं लाखों लोग जो हरिद्वार,ऋषिकेश, बनारस, काशी, उज्जैन और नासिक इत्यादि जगहों पर बस गए हैं इस उम्मीद में कि आध्यात्मिक प्रगति होगी – 100% गलत हैं | आध्यात्मिक प्रगति तो दूर, अपनों को बीच मझदार में छोड़ जो यह लोग भाग चले आए हैं – उस पाप से कैसे मुक्त होंगे ? कर्मों की निर्जरा तो हुई नहीं ?

 

अध्यात्म ध्यान और ब्रह्मचर्य पालन का मार्ग है | अध्यात्म में उतरने के लिए गहन चिंतन की जरूरत पड़ती है | बिना सोचे समझे जो घर छोड़ कर भाग ले (अपनी जिम्मेदारियों को पूरा किए बिना) – वह क्या चिंतन में उतरेगा ? सिद्धार्थ गौतम तो फिर भी रात में अपनी पत्नी और बच्चे के पैर छूकर यह सोचकर निकल गए कि राजा की बहू है सब संभल जाएगा लेकिन आम आदमी का क्या ?

 

आज के समय में कहीं जाने की जरूरत नहीं | जहां हैं जैसे हैं – वहीं चिंतन में उतर जाएं और धीरे धीरे आध्यात्मिक प्रगति करें | गृहस्थ/ परिवार में समय ज्यादा लगेगा – तो चिंता किस बात की ?

 

How to indulge in Spirituality when married | गृहस्थ जीवन में अध्यात्म का रास्ता कैसे पकड़ें

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